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________________ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * [तृतीय ४ - किसी प्रकारका मैथुन अर्थात् विषय-भोग मन, वचन और कायसे सेवे नहीं, सिवावे नहीं और सोनेवालेको भला जाने भो नहीं । ५ – परिग्रह अर्थात् धन, धान्य, भूमि आदि मन, वचन और कायसे रखे नहीं रखावे नहीं और रखनेवालेको भला जाने भी नहीं । २६० उपरोक्त पाँच महाव्रतोंके अतिरिक्त और भी बहुत से नियमों को मुनि पालन करते हैं । यथा: - १ - नंगे पैर और नंगे सिर रहते हैं। सदा पैदल चलते हैं । किसी भी प्रकारको सवारी, जैसे:- मोटर, रेल, घोड़ा, बैलगाड़ी आदिपर नहीं चढ़ते हैं । २ - चतुर्मास में अवश्य एक-स्थानपर चार मासके लिये निवास करते हैं, वरना सदा भ्रमण किया करते हैं। अधिक-सेअधिक एक स्थानमें एक माससे अधिक नहीं ठहरते हैं। इसके अतिरिक्त जहाँ एक चतुर्मास कर लेते हैं, वहाँ वे तीन वर्ष तक चतुर्मास नहीं करते हैं। ३ - मामूली श्वेत वस्त्र रखते हैं । कोई सिला हुआ कपड़ा नहीं पहनते हैं । मामूली सूत्र व धर्मग्रन्थ और मामूली काष्ठके भोजन व जलकेलिये पात्र रखते हैं। वे उतना ही सामान रखते हैं, जिसे वे स्वयं लेकर चल सकें। वे किसी जानवर या आदमीपर अपना सामान लादकर नहीं चलते हैं।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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