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________________ खण्ड] * मनुष्य जीवनकी सफलता * २६१ वजनमें कम देना, असली कह कर नकली चीज देना, आदि भी चोरी में ही गर्भित हैं । जो दूकानदार या साहूकार घर में धन रखकर काम फेल या दिवाला निकाल देते हैं, वे भी एक प्रकारकी चोरी करते है। इसके अतिरिक्त जो मनुष्य काम फेल करने वालोको काम फेल करनेमें सलाह व सहायता देते हैं, वे भी एक प्रकारके चोर हैं। जो व्यक्ति चुंगीवाले मालको बिना चुंगी चुकायें ले आते हैं, राज्यका महसूल नहीं भरकर नालको अन्दर ले आते हैं, वे भी एक प्रकार के चोर हैं। जो साहूकार कम देकर ज्यादाका दस्तावेज लिखा लेते हैं या जो मुनासिबसे ज्यादा ब्याज लेते हैं, वे भी एक प्रकारके चोर हैं । जो दुकानदार धीमें तेल, कोकोजस या चत्र मिलाकर बेचते हैं, या अन्य खाद्य पदार्थो में दूसरे क़िस्सकी कम कीमती वस्तु मिलाकर बेचते हैं, वे भी एक प्रकारके चोर हैं। जो वकील मुकदमे लड़ते हैं या जो दर या मामूली रोगको पैसे उगने हेतु बढ़ा चढ़कर बताते हैं वे भी एक प्रकार के चोर हैं 1 चोर तो प्रत्यक्ष अर्थात खुल्लमखुल्ला चोरी करने आते हैं, अन्य पेशेवाले दुकानदार जो ग्राहकोंको कम तोलते हैं या हम देते हैं या अच्छी और असली वस्तुके बजाय नकली और रानी चीज देते है वे तो दिन दहाड़े खुल्लमखुल्ला डाका रते हैं। यों कहना चाहिये कि साधुके भेपमें लुटेरोंका काम
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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