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________________ बताए * मुमुलुओंकेलिये उपयोगी उपदेश- २३७ - "हर एकका उपकार करना अपना कर्त्तव्य है। बदले में यदि वह बुराई करे तो तुम्हें अपने मनको मैला न करना चाहिये तुम्हें हमेशा अपना फर्ज अदा करते रहना चाहिये। अगर दूमग अपने फर्जमें भूले तो उसकी समझपर ग़स्सा लाने के बदले तरस खाओ।" -धम्मपद। "सुकर्म-पुण्यकर्म-भलाईसे लोक और परलोक दोनोंका सुख प्राप्त होता है। परन्तु उससे आवागमन सदाकेलिये नहीं छूट सकता। वह तो तभी छूटेगा. जब आदमी निष्कर्म हो जायगा ।" -एक जैनाचार्य। "भाग करनेसे मोगकी इच्छा बुझती नहीं. वरना ऐसी भड़. कती है जैसे घी पड़नसे आग धधकती है।" -मनुस्मृति । "परस्त्रीको जो कुदृष्टि से देखता है, वह अपने सिरपर व्यभिचारका मानसिक पाप चढ़ाता है।" -इसा । "तावा-पछतावा छह बातोंसे पूरा होता है। १-पिछले पापोंपर लजित होनेसे २-फिर पाप न करनेके प्रयन करनेसे, ३-मालिककी जो सेवा छूट गई हो उसे पूरा करनेसे. ४-अपने से किसीकी यदि कुछ हानि हो गई हो तो उसका घाटा भर देनेसे.
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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