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________________ २३६ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * [तृतीय और नाना प्रकारकी परीषहें सहते हैं, उपसर्ग सहते हैं और महान तप तपते हैं। कुछ वाक्य-रत "दया ज्ञानकी ध्वजा है और क्रोध मूर्खताकी ध्वजा है।" "धन्य हैं वे जो दया-शील हैं. क्योंकि वे ही परम पिताकी निज दयाके भागो हैं।" -ईसा। "जहाँ दया तहँ धर्म है, जहाँ लोभ तह पाप । जहाँ क्रोध तहँ काल है, जहां क्षमा तहं पाप ॥" -कबीर। 'क्रोधको जीतनेका शम्न क्षमा है, बुराईको जीतनका शम्न भलाई है, सूमताको जीतनका शस्त्र उदारता है. और झटका जीतनका शस्त्र सच है।" -महामारत । हपके साथ शोक और भय ऐसे लगे हैं, जैसे प्रकाशके संग छाया। सच्चा सुखी वही है. जिसकी दोनों एक समान है।" -धम्मपद।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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