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________________ खण्ड] * नवतत्त्व अधिकार * २०५] द्रव्यका एक और लक्षण भी प्राचार्यों ने फरमाया है। वह एक भिन्न शैलीसे पदार्थको समझानेके उद्देश्यसे कहा गया है। तात्पर्य दोनोंका एक ही है । वह लक्षण है 'गुण-पर्यायवाला द्रव्य होता है' । द्रव्यकी अनेक परणति होनेपर भी जो द्रव्यसे भिन्न न हो-द्रव्यके साथ नित्य रहै, वह तो 'गुण' है, और जो पलटन रूप हो वह 'पर्याय' है। द्रव्यके जितने गुण हैं, वे द्रव्यसे कभी भिन्न नहीं होते। समस्त गुणोंका समूह ही द्रव्य है । द्रव्यकी अनेक पर्याय (अवस्थायें ) पलटते हुए भी गुण कदापि नहीं पलटते । द्रव्यके नित्य साथ रहते हैं। जैसे सोना द्रव्य है, उसका गण भारीपन और पीलापन है। उसको कुण्डल रूप या कड़े रूप बनाना परिवर्तन है, वह पर्याय है। पर्याय एक रूपसे दूसरे रूप हो सकती है अर्थात पर्याय पलटी जा सकती है। पर उसका गण उन सब रूपोंके साथ रहेगा। ५-काल भी द्रव्य है। काल-द्रव्य लोकाकाशके प्रत्येक प्रदेशमें एक-एक अणु-रूप भिन्न-भिन्न रहता है। पुद्गल परमाणुकी अवगाहनाके बराबर ही इसकी अवगाहना है । यह अमूर्तीक है। इसके अणु लोकाकाशके प्रदेशोंकी बराबर असंख्यात हैं और रत्नोंकी राशिके * "गुणपर्ययवद् दम्यम्"-उमास्वाति ।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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