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________________ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * [ द्वितीय ११ – नोकषायके उदयसे उत्पन्न हुई जीवके मैथुन करनेकी अभिलाषाको 'भाववेद' कहते हैं । नाम-कर्मके उदयसे आविर्भूत जीवके चिह्न विशेषको 'द्रव्यवेद' कहते हैं । वेदके तीन भेद होते हैं: - १ - पुरुषवेद, २ - स्त्रीवेद और ३- नपुंसकवेद । · १८८ १२ - वर्गणाओं को आहार, भाषा आदि रूप परिणामावनेकी शक्तिकी पूर्णताको पर्याप्ति' कहते हैं। उसके छह भेद हैं: - १- आहार, २ - शरीर, ३ - इन्द्रिय, ४- श्वासोच्छ्वास, ५-भाषा और ३ - मनः पर्याप्ति । १३ - जीवकी मान्यता अथवा विचारोंको 'दृष्टि' कहते हैं । दृष्टि तीन प्रकारकी होती है: -- १- सम्यकदृष्टि, २- मिध्यादृष्टि और ३- मिश्रष्टि । १४- देखने को 'दर्शन' कहते हैं। ज्ञानके पहिले दर्शन होता है। बिना दर्शनके अल्पज्ञ जनोंको ज्ञान नहीं होता है परन्तु सर्वज्ञ देवको ज्ञान और दर्शन एक साथ होते हैं । दर्शनके चार भेद होते हैं: - १ - चतुर्दर्शन, २- भचतुर्दर्शन, ३ - अवधिदर्शन और ४ - केवलदर्शन | १५ - किसी वस्तुकी जानकारीको 'ज्ञान' कहते हैं । ज्ञान के आठ भेद हैं: - १ - मतिज्ञान, २- श्रुतज्ञान, ३ अवधिज्ञान, ४- मनः पर्यवज्ञान, ५- केवलज्ञान, ६-मनि श्रज्ञान, ७-श्रत श्रज्ञान - और = विभङ्गज्ञान |
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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