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________________ खण्ड] * नवतत्त्व अधिकार * ५-आत्माके बुरे परिणामोंको 'कपाय' कहते हैं । जीवको यह 'चारित्र मोहनीय कम'के उदयसे प्राप्त होती है। वह चार प्रकारकी है। १-क्रोध, २-मान, ३-माया और ४-लोभ । ६-अभिलाषाको-वालाको संज्ञा' कहते हैं। संज्ञाके चार भेद हैं:-१-आहार संज्ञा, २-भय संज्ञा, ३-मैथुन संत्रा और ४-परिग्रह संज्ञा। ____-जिस परिणाम-विशेष द्वारा आत्मा काँसे लिप्त होता है तथा योग और कपायकी तरंगसे जो उत्पन्न होती हो, ऐसे मन के शुभाशुभ परिणामको लश्या' कहते हैं। लेश्याके छह भेद हैं। १-कृष्ण लेश्या, २-नील लेश्या, ३-कापोत लेश्या, ४-तेजी लेश्या, ५-पद्म लेश्या और ६-शुक्ल लेश्या। -आत्माक लिङ्गको-चिह्नको 'इन्द्रिय' कहते हैं। इन्द्रियाँ पाँच प्रकारकी होती हैं । १-श्रीन्द्रिय, २-चक्षरिन्द्रिय, ३-घ्राणेन्द्रिय, ५-रसनेन्द्रिय और ५-स्पर्शन्द्रिय । ___-मूल शरीरको बिना छोड़े जीवके प्रदेशोंके बाहर निकलने को 'समुद्घात' कहते हैं। समुद्घातके सात भेद हैं। १-वंदनीय, २-कपाय, ३-मारणान्तिक, ४-वैक्रिय, ५-श्राहारिक, ६-तैजस और ७-कंवलि समुद्घात । १०-जिसमें संज्ञा हो-मन हो, उसे 'संज्ञी' कहते हैं और जिस जीवके मन नहीं होता है, उसे 'असंज्ञी' कहते हैं।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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