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________________ १७६ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * द्वितीय _____३-मैना-तोता आदि खेचर जीवोंके चार भेद-सैनी, असैनी, पर्याप्त और अपर्याप्त । ४--साँप आदि उरःपरिसर्पके चार भेद-सैनी, असैनी, पर्याप्त और अपर्याप्त। ५-नौला-चूहा आदि भुजपरिसर्पके चार भेद-सनी, असैनी, पर्याप्त और अपर्याप्त । इस प्रकार तिर्यश्च पञ्चन्द्रियके २२+६+२० = कुल ४८ भेद हुये। (३) मनुष्यके भेद इस प्रकार हैं: शास्त्रकारोंने दो प्रकारकी भूमि फरमाई है--एक वह, जहाँ व्यापार, कृषि आदि कार्य होते हैं; उसे 'कर्मभूमि' कहते हैं। और दूसरी वह, जिसमें मनुष्योंको कोई कार्य नहीं करना पड़ता है। उनकी इच्छायें कल्पवृक्षांसे पूर्ण हो जाती हैं; उसे 'अकर्मभूमि' या 'भोगभूमि' कहते हैं। जहाँ मनुष्य पाये जाते हैं, ऐसे केवल तीन बड़े बड़े द्वीप है: १-जम्बूद्वीप, २-धातकीखण्ड और ३-पुष्करार्धद्वीप । १--जम्बूद्वीपमें तीन क्षेत्र हैं। १-मरत, १-ऐरावत, और १-महाविदेड ।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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