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________________ १७४ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * [द्वितीय जरायुज, अण्डज और पोत जीवोंका गर्भजन्म होता है; देव और नारकियोंका उपपादजन्म होता है और शेष समस्त जीवों का-बिच्छू, काँतर, मेढ़क आदिका सम्मूर्छनजन्म होता है । जीवोंके भेद शास्त्रकारोंने संसारी समस्त जीवोंको चार हिस्सों में विभाजित किया है:-- १-नारकीय, २-तिर्यञ्च, ३-मनुष्य और ४-देव । (१) शास्त्रकारोंने सात नरक फरमाये हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं: १-धम्मा, २-बंसा, ३-मवा-सीला, ४-अंजना, ५-अरिष्टा-निष्ठा, ६-मघा और 5-माधवी । इन सातो नरकों में रहनेवाले नारकीय जीवोंके पर्याप्त और अपर्याप्त करके कुल चौदह भेद होते हैं। (२) तिर्यन्त्र के भेद इस प्रकार हैं: १-पृथ्वीकायके दो भेद-सूक्ष्म और बादर। इन दोनोंके पर्याप्त और अपर्याप्त, इस तरह चार भेद होते हैं। • 'जरायुजाएडजपोतानां गर्मः', 'देवनारकाणामुपपादा', 'शेषाणां सम्मूईनम्। -उमास्वाति ।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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