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________________ खण्ड] * नवतत्त्व अधिकार * १७३ तक और अधिक-से-अधिक तीन समय तक अनाहारक रहता है। पाँच इन्द्रिय और मनके निम्नलिखित पृथक्-पृथक् विषय हैं: १-स्पर्श इन्द्रियका विषय स्पर्श करना अर्थात् छूना है, २-रसना इन्द्रियका विषय रस चखना अर्थात् स्वाद लेना है, ३-घ्राण इन्द्रियका विषय सुगन्ध लेना अर्थात् संघना है, ४नेत्र इन्द्रियका विषय वर्ण-ग्रहण अर्थात् देखना है और ५श्रोत्र इन्द्रियका विषय शब्द-ग्रहण अर्थात् सुनना है। मनका विषय श्रुतज्ञानगोचर पदार्थ है। जीव एक शरीरको छोड़कर दूसरे शरीरको तीन प्रकारसे धारण करता है अर्थात् जन्म लेता है । १-सम्मूर्छन, २-गर्भ और ३-उपपाद। . १-अपने योग्य द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावकी विशेषतासे तीन लोकमें भरे हुए अपने चारों ओरके पुद्गल परमाणुओंसे (माता-पिताके रजोवीर्यके मिलने के बिना ही) देहकी रचना होने को 'सम्मूर्छनजन्म' कहते हैं। इनके शास्त्र में चौदह स्थान बताये हैं। २-स्त्रीके गर्भाशयमें माताके रज और पिताके वीर्यके संयोगसे जो जन्म होता है. उसे 'गर्भजन्म' कहते हैं। ____३-माता-पिताके रज-वीर्यके बिना देवयोनिके स्थान-विशेषमें जो जन्म होता है, उसे 'उपपादजन्म' कहते हैं।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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