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________________ १६२ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [द्वितीय उन्हें छोड़कर आठवें गुणस्थानके बाईस हेतुओंमेंसे शेष सोलह बन्ध-हेतु नौवें गुणस्थानमें समझने चाहिये। १०-तीन वेद तथा संज्वलन क्रोध, मान और माया, इन छहका उदय नौवें गुणस्थान तक ही होता है। इस कारण इन्हें छोड़कर शेष दस बन्ध-हेतु दसवें गुणस्थानमें कहे गये हैं। ११-१२-संचलन लोभका उदय दसवें गुणस्थन तक ही रहता है। इसलिये इसके सिवाय उक्त दसमेंसे शेष नौ हेतु ग्यारहवें तथा बारहवें गुणस्थानमें पाये जाते हैं । नौ हेतु ये हैं:चार मनोयोग, चार वचनयोग और एक औदारिकाययोग । १३-तेरहवें गुणस्थानमें सात हेतु हैं:-सत्य और असत्यामृषामनोयोग, सत्य और असत्यामृषावचनयोग, औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रकाययोग तथा कार्मणकारयोग । १४-चौदहवें गुणस्थानमें योगका अभाव है। इसलिये इसमें बन्ध-हेतु सर्वथा नहीं है। संक्षेप १-पहिले गुणस्थानमें पचपन बन्ध-हेतुई। २-दूसरे गुणस्थानमें पचास बन्ध-हेतु।। ३-तीसरे गुणस्थानमें तेतालीस बन्धातु हैं। ४-चौथे गुणस्थानमें छयालीस बन्धहेतु हैं।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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