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________________ खण्ड ] * कर्म अधिकार * १६१ ६ - छठा गुणस्थान सर्वविरतिरूप है। इसलिये इसमें शेष ग्यारह अविरतियाँ नहीं होतीं। इसमें प्रत्याख्यानावरणकषायचतुष्क, जिसका उदय पाँचवें गुणस्थान पर्यन्त ही रहता है, नहीं होता। इस तरह पाँचवें गुणस्थान-सम्बन्धी उन्तालीस हेतुमेंसे पन्द्रह घटा देनेपर शेष चौबीस रहते हैं। ये चौबीस तथा आहारिक द्विक कुल छब्बीस बन्ध-हेतु छठे गुणस्थान में है । ७- सातवें गुणस्थानमें वैक्रियशरीर के श्रारम्भ और परित्यागके समय वैक्रियमिश्र तथा आहारिक शरीर के आरम्भ और परित्याग के समय आहारिकमिश्र योग होता है । पर उस समय प्रमत्त-भाव होनेके कारण सातवाँ गुणस्थान नहीं होता । इस कारण इस गुणस्थानके बन्ध हेतुओं में ये दो योग नहीं गिने गये हैं! इस प्रकार इसमें चौबीस हेतु हैं । ८ - वैयि शरीरवालेको वैक्रियककाययोग और आहारिक शरीरवारको आहारिक काययोग होता है। ये दो शरीरवाले अधिक से अधिक सातवें गुणस्थानके ही अधिकारी हैं, आगे नहीं । इस कारण आठवें गुणस्थानके बन्ध-हेतुओं में इन दो योगों को नहीं ना है । इस प्रकार सिर्फ बाईस बन्धहेतु इस गुणस्थान में हैं । ६ - हास्य- पट्क अर्थात् हास्य, रति, अरति, शोक, भय -- और जुगुप्सा आठवो आगेके गुणस्थान में नहीं होते। इसलिये
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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