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________________ मु य सिद्धान्तों और विषयोंका अनुमान लगा सकें। मैंने इस नसके लिखते समय इस बातका पर्ण ध्यान रक्खा है कि किसी स प्रदाय-विशेषका खण्डन-मण्डन न किया जाय । यह मैं अपने बन्धुओंको अवश्य इतमीनान दिलाना चाहता है कि दुःख और विपत्तिकै समयमें धर्म जैसी सहायता करता है, बैसी संसार में कोई पदार्थ नहीं कर सकता । जब मुझे भाई साहबके स्वर्गवासकी मानसिक अपार वेदना थी और उसके साथ-साथ शारीरिक कष्ट भी था. उस समय अगर किसी वस्तुन मुझे संतोष और महायता पहचाई तो वह केवल धार्मिक ग्रन्थोंका आश्वासन ही था । अगर मुझे इस अवसरपर यह उत्तम सहारा न होता तो न मालम मेरी क्या दशा हुई होती । इन धार्मिक ग्रन्थॉन स्पष्ट कर दिया कि 'हे जीय ! तुम एक-नएक दिन अवश्य मरना है और संसारमें कोई किसीका नहीं है। केवल शुभ और अशुभ कर्म ही अपने हैं। इस कारण सदा इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि जहाँतक मुमकिन हो वहाँतक अपने तन, मन और धनका सदा सदुपयोग करते रहना चाहिये ।' मैं आशा करता हूँ कि मेरे बन्धु इस पुस्तकको पढ़कर अवश्य लाभ उठावेंगे, और तभी मैं भी अपनेको कृतार्थ समझंगा।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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