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________________ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [द्वितीय श्रचक्षुर्दर्शनावरणीय -- आँखको छोड़कर त्वचा, जीभ, नाक, कान और मनसे जो पदार्थोंके सामान्य-धर्मका प्रतिभास होता है, उसे 'अचतुर्दर्शन' कहते हैं, उसके आवरणको 'चतुर्दर्शनावरणीय' कर्म कहते हैं । १२६ अवधिदर्शनावरणीय - इन्द्रियों और मनकी सहायता के बिना ही आत्माको रूपीद्रव्य के सामान्य धर्मका जो बोध होता है, उसे 'अवधिदर्शन' कहते हैं; उसका आवरण 'अवधिदर्शनावरणीय' कर्म कहता है । केवलदर्शन - संसार के सम्पूर्ण पदार्थों का जो सामान्य अव बोध होता है, उसे 'केवलदर्शन' कहते हैं; उसका आवरण केवलदर्शनावरणीय कर्म' कहाता है। निद्रा - कोई-कोई सोया हुआ जीव थोड़ी-सी आवाज या पैछरसे जाग जाता है। जिस कर्मके उदयसे ऐसी नींद आती है, उस कर्मको 'निद्रा कर्म' कहते हैं । निद्रा-निद्रा - कोई-कोई सोया हुआ जीव बड़े जोरसे चिल्लाने या हाथसे जोर-जोर से हिलानेपर उठता है। जिस कर्मके उदयसे ऐसी नींद आती हैं, उसे 'निद्रा निद्रा कर्म' कहते हैं । - प्रचला — खड़े-खड़े या बैठे-बैठे किसी-किसी जीवको नींद श्राती है, उसको 'प्रचला' कहते हैं; जिस कर्मके उदयसे ऐसी नींद आती है, उस कर्मको 'प्रचला कर्म' कहते हैं ।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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