SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड] * अहिंसाका स्वरूप * HOGG वृत्तियों में किसी प्रकारकी मलीनताके भाव न थे। उनके हृदयमें उस समय भी उज्ज्वल, अहिंसक और कल्याणकारक भाव कार्य कर रहे थे। इसके विपरीत यदि कोई मनुष्य द्वेषभावके वश होकर किसी दूसरे व्यक्तिको मारता है अथवा गालियाँ देता है, तो समाज में निन्दनीय और राज्यसे दण्डनीय होता है; क्योंकि उस व्यवहारमें उसकी भावनाएँ कलुषित रहती हैं, उसका आशय दुष्ट रहता है । यद्यपि उपरोक्त दोनों प्रकारके व्यवहारोंका बाह्य स्वरूप एक ही प्रकारका है, तथापि भावनाओंके भेदसे उनका अन्तर्रूप बिलकुल एक दूसरेसे विपरीत है। इसी प्रकारका भेद द्रव्य और भाव हिंसाके स्वरूपमें होता है। वास्तवमें यदि देखा जाय तो हिंसा और अहिंसाका रहस्य मनुष्यकी मनोभावनाओंपर अवलम्बित है । किसी भी कर्मके शुभाशुभ बन्धका आधार कतॊके मनोभावोंपर अवलम्बित है। जिस भावसे प्रेरित होकर मनुष्य जो कर्म करता है, उसीके अनुसार उसे उसका फल भोगना पड़ता है। कर्मकी शुभाशुभता उसके स्वरूपपर नहीं, प्रत्युत कर्त्ताकी मनोभावनाओंपर निर्भर है। जिस कर्मके करनेमें कर्ताका विचार शुभ है, वह 'शुभ कर्म' कहलाता है। जिस कर्मके करनेमें उसका विचार अशुभ है, वह 'अशुभ कर्म' कहलाता है । ___ किसी जीवको कष्ट पहुँचानेमें जो अशुभ परिणाम निमित्तभूत होते हैं, उसीको हिंसा कहते हैं और बाह्य दृष्टिसे हिंसा
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy