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________________ [ ७ ] हो सकता है। इस सत्र कथन से बढ़कर भगवान कुन्दकुन्द वस्त्रसहित संयम अथवा मुनिपद मानने का घोर निषेध करते हुए यहां तक कहते हैं कि और साधारण मुनि केवली आदि की तो बात ही क्या है यदि पञ्चकल्याणक प्राप्त करने वाले तीर्थकर भगवान भी वस्त्रधारी हों तो वे भी संयम और मोक्षप्राप्ति कभी नहीं कर सकते हैं। ऐसा ही जैन शासन का सिद्धान्त है। क्योंकि मोक्षमार्गं सर्वथा नग्न है उसमें वस्त्र बाकी जो सवत्र संयम और श्राभरण का सर्वथा त्याग है। मोक्ष मानते हैं वे सब उन्मार्ग - मिध्यामार्ग हैं | भगवान कुन्दकुन्द के इस कथन से स्पष्ट सिद्ध है कि वस्त्र सहित अवस्था में संयम नहीं हो सकता है । फिर मोक्ष की प्राप्ति तो सर्वथा असम्भव है I इसका कारण भी यही है कि परिग्रह को मूर्छा बताया गया है। अर्थात् - तिल मात्र भी परिग्रह क्यों न हो वह ममत्व-बुद्धि करने वाला है और जहां ममत्वभाव है वहां वीतरागता नहीं आ सकती है। तथा विना वीतरागता के परम विशुद्धि श्रात्मा में नहीं हो सकती है। यदि वस्त्र सहित ही संयम हो जाता तो दिगम्बर जैन धर्म में यह एकांत सर्वथा नियम नहीं होता कि बिना सर्वथा aa त्याग किये जिनदीक्षा नहीं हो सकती है। जब तक वस्त्रों का सर्वथा त्याग नहीं किया जाता है तब तक आत्मा में संयम की प्राप्ति अथवा छठा गुणस्थान नहीं हो सकता है ।
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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