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________________ [६४ ] प्रकार पांचों इन्द्रिय ज्ञान भी पांचों द्रव्यइन्द्रियों के परस्पर संयोग से पच्चीस प्रकार क्यों नहीं हो सकते ?" इन पंक्तियोंका बहुत खुलासा उत्तर हम ऊपर सप्रमाण एवं सयुक्तिक दे चुके हैं, इस लिये पुनरुक्ति अथवा पिष्टकरना व्यर्थ है। . स्त्री-मुक्ति प्रकरण को समाप्त करते हुए प्रो० सा० ने फिर अपनी बात को दुहराया है। वे लिखते हैं कि "इस प्रकार विचार करने से जान पड़ता है कि या तो स्त्रीवेद से ही क्षपक श्रेणी चढ़ना नहीं मानना चाहिये और यदि माना जाय तो स्त्री-मुक्ति के प्रसंग से बचा नहीं जा सकता है। उपलब्ध शास्त्रीय गुणस्थान-विवेचन और कर्मसिद्धान्त में स्त्री-मुक्ति के निषेध की मान्यता नहीं बनती।" इन पंक्तियों में कोई नई बात अथवा शास्त्रीय प्रमाण एवं युक्तिवाद नहीं है केवल अपनी बात को अन्त में दुहराया गया है। हम ऊपर इन सब बातों का सप्रमाण एवं सयुक्तिक उत्तर दे चुके हैं । और यह बात भली भांति सिद्ध कर चुके हैं कि भाववेदस्त्री तथा द्रव्य-पुरुष ही क्षपक श्रेणी चढ़ सकता है, द्रव्यस्त्री नहीं। इस सम्बन्ध में कर्म सिद्धान्त और गुणस्थानों का विवेचन भी हम कर चुके हैं। दिगम्बर शास्त्रों की मान्यता से स्त्री-मुक्ति किसी प्रकार भी सिद्ध नहीं हो सकती। प्रो० सा० उपर्युक्त हमारे लेख से अपना समाधान कर लेंगे ऐसी हम आशा करते हैं। स्त्री-मुक्ति के सम्बन्ध में
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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