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________________ [ २३ ] सिद्ध करते हैं । इसके सिवा वे आचार्य शिरोमणि भगवान कुन्दकुन्द स्वामी को भी अमान्य ठहराते हैं। प्रो० सा० अपने लेख में स्पष्ट रूप से लिखते हैं कि स्त्री-मुक्ति और केवल्ली कवलाहार आदि इन बातों का खण्डन कुन्दकुन्द स्वामी ने किया है परन्तु उनका यह खण्डन दूसरे उमा - स्वामी आदि चाय से नहीं मिलता है अर्थात् दूसरे उमास्वामी आदि आचार्य उन तीनों बातों का विधान करते हैं। प्रो० सा० यह भी लिखते हैं कि गुणस्थान चर्चा और कर्म सिद्धान्त विवेचन की कोई व्यवस्था कुन्दकुन्दाचार्य ने नहीं की है इस लिये शास्त्रीय चिन्तन से उनका कथन अधूरा है। अर्थात् गुणस्थान और कर्म व्यवस्था के आधार पर शास्त्रीय प्रमाणों से स्त्रीमुक्ति, सवत्र-मुक्ति और केवली कवलाहार ये तीनों ही बातें सिद्ध हो जाती हैं परन्तु इन बातों का निषेध करने वाले कुन्दकुन्दाचार्य ने गुणस्थान और कर्म सिद्धान्त व्यवस्था का कोई विचार नहीं किया है प्रो० सा० के इस कथन से भगवान कुन्दकुन्द स्वामी की गुणस्थान और कर्म सिद्धान्त के विषय में जानकारी सिद्ध होती है । अथवा उन्होंने गुणस्थान और कर्म सिद्धान्त के विरुद्ध तथा शास्त्रों के विरुद्ध अपने द्वारा स्थापित आम्नाय में स्त्री-मुक्ति अधिकार आदि को नहीं माना । इस बात की पुष्टि प्रो० सा० ने इन पंक्तियों में की है है “दिगम्बर सम्प्रदाय की कुन्दकुन्दाचार्य द्वारा स्थापित आम्नाय में स्त्रियों को मोक्ष की अधिकारिणी नहीं माना गया,
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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