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________________ [ २२ ] स्वीकार करता है। उसकी मान्यता के अनुसार स्त्री पर्याय से उसी भव से मुक्ति होती है, संयमी मुनि वस्त्र पहने हुए ही मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं तथा श्री अर्हन्त परमेष्ठी केवली भगवान भी कवलाहार करते हैं, अर्थात्-भूख प्यास की बाधा उन्हें भी सताती है अतः उसे दूर करने के लिये वे भोजन करते हैं। दिगम्बर जैन धर्म इन तीनों बातों को सर्वथा नहीं मानता है। यह दि० जैनधर्म, वीतराग धर्म है इस वीतराग धर्म में स्त्री मुक्ति, सवल मुक्ति और केवली कवलाहार इन तीनों बातों को किश्चिन्मात्र भी स्थान नहीं है। कारण, गुणस्थान रूप भावोंकी विशुद्धि और कर्म सिद्धान्त रूप मार्गणाओं की रचना ही ऐसी है कि वह उक्त तीनों बातों को मोक्ष प्राप्ति के लिये सर्वथा अपात्र समझती है। उसका मूल कारण यही है कि इस धर्म में वीतरागता की ही प्रधानता है। बिना उसके संयम की प्राप्ति एवं आत्म विशुद्धि नहीं हो सकती है। मोक्ष प्राप्ति के लिये परिपूर्ण विशुद्धि एवं परिपूर्ण वीतरागता का होना परमावश्यक है । स्त्री पर्याय और सवस्त्रावस्था में उस प्रकार की विशुद्धि तथा वीतरागता बन नहीं सकती, तथा केवली भगवान के कवलाहार यदि माना जाय तो वे भी वीतरागी एवं परम विशुद्ध नहीं बन सकते, कवलाहार अवस्था में उनके तेरहवां गुणस्थान तथा अर्हन्त परमेष्ठी का स्वरूप ही नहीं रह सकता है। परन्तु प्रो. हीरालालजी उक्त तीनों बातों को सप्रमाण
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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