SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १०२ ] आदि पांचों भेदों में गर्भित नहीं हो सकता। क्योंकि पुलाक आदि पांचों प्रकार के मुनि तो सम्यग्दर्शन सहित और संयमी होने वाले भावलिंगी मुनि हैं । दूसरा द्रव्यलिंगी मुनि वह भी होता है जो मुनिपद में रहता है, उसके सम्यग्दर्शन भी होता है परन्तु प्रत्याख्याना - बरण कषाय का उदय रहने से उसके संयम भाव नहीं होता है, ऐसा भी मुनि कहा जाता है। क्योंकि भावलिंगी मुनि के तो केवल संज्वलन कषाय का ही उदय रहता है, अतएव वह संयमी होता है । बस यही " द्रव्यलिंगं प्रतीत्य भाज्याः" का खुलासा अर्थ है। यहां पर यह बात भी खुलासा हो जाती है कि द्रव्यलिंगी मुनि भी भले ही मिध्यात्व कर्म के उदय से अंतरंग में मिध्यादृष्टि हो, परन्तु वह भी नम दिगम्बर ही होता है । द्रव्यलिंगी मुनि भी कभी वस्त्र धारण नहीं कर सकता । यदि वस्त्र धारण कर लेवे तो उसे द्रव्यलिंगी भी मुनि नहीं कह सकते हैं। क्योंकि वस्त्र त्याग किये बिना तो मुनिलिंग ही नहीं कहा जाता है । इस लिये दिगम्बर जैन सिद्धान्तानुसार मुनि पद में वस्त्र त्याग अनिवार्य है । आगे प्रोफेसर सा० ने लिखा है कि "मुक्ति भी सग्रन्थ और निर्मन्थ दोनों लिगों से कही गई है पेक्षया । निर्मन्थलिंगेन संग्रन्थलिंगेन वा सिद्धिभूतपूर्व नया( तत्वार्थ सूत्र श्र० १० सर्वार्थसिद्धि )
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy