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________________ [ १०१ ] यह कहना कि "टीकाकारों ने इनका अर्थ यही किया है कि मुनि कभी कभी वस्त्र भी धारण कर सकते हैं" सर्वथा मिथ्या है। सर्वार्थ सिद्धि, राजवार्तिक और श्लोकवार्तिक प्रन्थ की टीका पाठक देख ले। उक्त दोनों वाक्यों का क्या अर्थ है इस बात को हम यहां पर स्पष्ट करते हैं पुलाक आदि पांचों प्रकार के मुनि भावलिंग की अपेक्षा तो पांचों निग्रन्थ-मुनि हैं। अर्थात सम्यग्दर्शन और केवल संज्वलन कषाय के उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशमजनित संयम की दृष्टि से पांचों मुनि भावलिंगी हैं। क्योंकि पांचों के सम्यर्शन और संयम रहता है। परन्तु द्रव्यजिंग की अपेक्षा भेद हो जाता है, वह दो प्रकार से होता है. एक शरीर रचना की दृष्टि से, दूसरा कर्मोदय की दृष्टि से। शरीर रचना की दृष्टि से तो मुनिपद केवल द्रव्य पुरुषवेद से ही होता है। दूसरे स्त्री आदि द्रव्यलिंग से मुनिपद की पात्रता नहीं आती है। कर्मादय की दृष्टि से यह भेद हो जाता है कि कई पुरुष मुनिपद तो धारण कर लेवे और वाह्य क्रियायें भी सब मुनिपद के समान करता रहे किंतु मिथ्यात्व कर्म के उदय म वह भावों की अपेक्षा मिथ्या दृष्टि हो तो वह द्रव्यलिंगी मुनि कहा जायगा, भावलिंगी नहीं कहा जायगा। क्योंकि उसके सम्यादर्शन व संयम नहीं है। ऐसा द्रव्यलिंगी मुनि पुलाक
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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