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________________ .१६० खत्तिमकंडग्मामे सिद्धत्यो नाम खत्तियो अत्थिा सिसत्य मारिवाए साहर तिसलाई कुच्छिसि।। ५२।। (हरिणगमेसी दूतेण) आ. नि. पृ. १७९ ६६. वीरपुरं बारवई, को अंगऊ कोल्लायग्गामो (आ. नि. २३२५) ६७ विहरतो मोराक सन्निवेस प्राप्तस्य भगवतः सन्निवासी दुईज्जत नामाभिधाना पाषंडस्यो। (कलसूत्रटीका) ६८ भगवं य अडमागहीए भासाए धम्म-माखई।। (श्यामाचार्यकृत प्रशायणा सत्र) ६९. संमणस्स भगवओ महावीरस्स पिया कासवब गुणे तस्सणं तेो नामधिज्जा एबमाहिज्जतिंगतेणजहा सिद्धथो वा सिज्जंसई वा जसंसेइव। समणस्स भग विबो महावीरस्स माया बासिटुगुत्तेणं तीसे ताओ नाम धिज्जा। एवमाहिज्जतिं तं जहा तिसल्लाका विदेहदिन्नाइ वा पीइकारिणी वा (कल्पसत्र) ७०. कशलनिदश मासिक दिसम्बर १९८६,पृ. ३८ ७१. कुशल निर्देश मासिक दिसंबर १९८६ पृ. ६८ ७२. कुशलनिर्देश दिसंबर १९८६ पृ. २९ ७२. श्रमण भगवान महावीर (परिशिष्ट) का जन्मस्थान क्षत्रियकंडग्राम (जमुइ) डा. श्यामानन्दप्रसाद १. भरतसिंह उपाध्याय कृत बुद्धकालीन भारतीय भूगोल। २. Select Inscription of Bihar P. 6. 35.3 ३. मनिदर्शन विजय जी (त्रिपुटी) कृत क्षत्रियकुंड ४. डा. भगवानदास केसरी -सिकंदरा का लेख ५. डा. रामरघुवीरसिंह कृत मुंगेरके प्राचीन-जैनतीर्थ पृ. १६ 6. Bihar District Gangeteers Munger (1960) P. 514 ७. डा. रामरघुवीरसिंह-मुंगेर के प्राचीन जैनतीर्थ पृ. १७ ८. वही पृ. १८ १. भगवतो माया चेडगस्स भगिणि, भोजई चहगस्स धूया (आ. चु.) २. तिसलाई वा विदेहदिन्नाई वा पियकारिणी वा (आचारांग सूत्र) ३. टीकाकार की व्याख्या-विदेहदिन्ना त्रिशला यस्या अपत्य विदेहदिन्न ४. जेट्ठा कंडगामे वडमाण सामिणे। बेदृस्स नंदीवडेणस दिन्ना (आ. टीका) ५. निग्गंठ णायपत्त श्रमणभगवान महावीर और मांसाहार परिहार (हीरालाल दुग्गड़) ६. कलारिया छहविहा पं.व. १. उग्गा २. भोगा ३. राइन्न ४. इक्खागं ५. णाया, ६. कारब्बा ६. स्थानांग सूत्र ४९७ ७. इतश्च वसुधावया मौली मणिक्य सन्निभा वैशालीति नगर्यस्त्य गरीयसी।।१४।। अखडल इवा खंड शासना पृथ्वीपति चेटी कृतश्च भूपालस्तत्रं चटकाख्यभूत।। १८५।। ८. डिक्शनरी आफ पाली श्रमरनेक्स भाग २ पृ. ९४१ ९. तएणं से कणिए राया तेतीसाए दंती सहस्सहिं तेतीसाए आस सहस्सेहि तेतीसाए रह सहस्सहि, तेतीसाए मानुस्स कोडिहिं सिद्धि संपविटङ् बिढिए जाव जावेणं सुभेहिंदेसिहिं सुभेहि अवरावासहिं वत्तेभाए वसमणि अंगजणवयस्स मसे मझे जेणेव विदेहे जणवए बसाली तेणेव पट्टारेत्य गमणाका १०.पंचानां सिन्धु षष्टानांस नदीनां अंतरश्रितः वाहिकानाम देशजाः (महाभारत में बाहिक का अर्थ पंजाबवासी किया है) ११. मध्यऐशिया और पंजाब में जैनधर्म (हीरालाल दुग्गड़) पृ. १०६-७
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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