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________________ २५८ ६०. बहिआ य णायसडे आपुच्छिताणं गाए सव्वे दिवसे मुहुत्त सेसे कमारग्गामं समणुपत्तो ।। भा. १११ ।। (हरिभद्र टीका) तत्र च पथद्वयं एकों जलेन वपरः स्थल्ये । तत्र भगवान स्थल्यो गत्वान् गच्छंश्च दिवसे मुहुर्तशेषे कुमारग्राममनुप्राप्त इति गाथार्थ: । ( पू. १८८ ) ६१. गौतमबुद्ध की अंतिम यात्रा महापरिनिवाणसुत्त । ६२. डा. रामरघुवीरसिंह मुंगेर के प्राचीन जैनतीर्थ क्षत्रियकुंड पृ. ३२ से ३८ ६३. स्टीवेंमन कृत दी हार्ट आफ जैनिजम । पृ. २१-२२. ६४. हम आगे इनका आचार्य जी तथा पन्यास जी दोनों की मान्यताओं पर साथ साथ विचार करेंगे। ६५. देखें आचार्य श्री कृत तीर्थंकर महावीर भाग १ पृ. ८३ ६६. पं० कल्याणविजय जी कृत- श्रमण भगवान महावीर पृ. ५ ६७ यद्यपि शास्त्र में ऐसा सकेत नहीं मिलता कि अलग-अलग स्थानों में दीक्षाएं हुई। क्योंकि यहा के तीन पर्वतो के नाम चक्कणाणि हैं। जिस का अर्थ है कि भगवान ने इन तीनों पर्वतों पर धर्म चक्र का प्रवर्तन किया इस का विशेष खुलासा हम पहले कर आये हैं। ६८ आचार्य तुलसी और र्मानि नथमल कृत अतीत का अनावरण पृ १३१ ६९ उपरोक्त पृ १३२ 70 An early History of Vaishali Page 224 ७१ स्वामी सहजानंद सरस्वती कृत ब्रह्मर्ण वंश विस्तार पृ ३४०, ३३१ ७२. मज्झिमनिकाय (हिन्दी अनुवाद ) प १२७ पदमकेत ११ ६१९ में ज्ञातृक को वर्तमान मे दरडीह, मसरस जिला सारण (छपरा) से मिलाया गया है। ७३. अथ लो कपिलवत्थवासी सक्याकोसिका नारकनादत पाइस् भगवा अम्हाक ञातिसेठो (महापरिव्वान सुत्त सूत्र ५८५) यहा जानिसेठो का अर्थ है- ज्ञाति श्रेष्ठ (उत्तम जाति ) । ज्ञात या ज्ञातृकल नहीं है। ७४ अतीत का अनावरण पृ. १३३ (आ. तुलसी मुनि नथमल कृत ) । ७५ आचार्य श्री विजेन्द्र सरि कृत तीर्थंकर महावीर भाग १ पृ ७१ से ७७ सीरिय कुसहाया। ९. वारवइया - सोरठा १२. ७६. गर्यागह मगध, २. चंपा अगा, ३. तामिलित्ति बगाय । ४. कचंनप्र-कलिंग, ५. वाराणसी चैव कामी ।।१।। ६ माकंत कोमला ७ गयपुर च कुरु ८ कपिल पाचाला १० अहिछत्ता - जागला चेव ।।२।। ११. विदेह - मिथिला १३ वच्छ कोठ १४ नदिपुर मडिब्मा, १५. भद्दिलपुर मेव मलया ।। ३।। १६. वराड-वच्छ १७ बरणा- अच्छा, १८ भत्तिई दसन्ना । १९. सुत्तिवइ - चेदि, २० वीयभयं सिन्धसौवीरा । । ४ । । २१ महरा य - सूरमेना, २२. पावा भंगीय, २३. मासपुरी - बड्डा । २४ सार्वोत्थिय कुणाला २५. कोडिर्वारसं च कणाला । । ५ । । २६. सेवियाविय नयरी केगइ अद्ध च आरिया भाणिया । जन्य उत्पति जिणाणं चक्कीणं रांय कणहाणं | ||६|| ( वृहत्कल्पसूत्र उद्देशा १ पृ. ९१३) ७७. (१) अह चितसुद्ध पक्खम्स तेरसि पुबरत कालाम्म हत्युत्तराहि जाओ कुडग्गाम महावीरो । ( भा. ६१ ) हत्थुत्तर जोएण कडग्गामम्मि खत्तिओ जच्चो । वजरसह संघयणो भविजन विवाहो वीरो । ( आवशयक नियुक्ति ४५९५ ) एवं अभिन्यु अंव तो बुद्धो बुद्धार्रावदे सरिस म्हो । लोगतिग देवहि कडग्गामे महावीरो ।। भा ८८ ।।
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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