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________________ १४६, मात धर्म कम्बोज, सुराष्ट्र आदि क्षत्रियों की श्रेणियां कृषि व्यापार तथा शस्त्रों द्वारा जीवनयापन करते थे और लिच्छिवी, वृजि, मल्लक, भद्रक, कुरु, पांचाल एवं मातृ आदि श्रेणियां राजा के समान जीवन बिताती थीं।। रामायण और विष्णुपुराण के अनुसार वैशालीनगरी की स्थापना इक्ष्वाकु-पुत्र विशाल द्वारा की गई थी। इसलिए यह विशाला नाम से प्रसिद्ध हुई। वैशाली धन धान्य से समृद्ध तथा जन-संकुल नगरी थी। बौद्ध और जैन दोनों धर्मों के इतिहास से वैशाली के इतिहास से घनिष्ठ संबंध रहा है। पांच सौ वर्ष ईसापूर्व में भगवान महावीर और बुद्धदेव इन दोनों की पवित्र स्मृतियां वैशाली से निहित हैं जैनाचार्य हेमचन्द्र सूरि त्रिशष्टिशलाका पुरुष चरित्र पर्व १० श्ल १८४-८५ में कहा है कि धन धान्य एवं समृद्धियों से भरपूर वैशालीनगरी थी उस पर चेटक का शासन था। वैसाली की जनसंख्या का मख्य अंग क्षत्रिय थे। श्री रे चौधरी के शब्दों में- "कट्टर हिन्दूधर्म के प्रति उन क्षत्रियों का मैत्रीभाव प्रकट नहीं होता। इसके विपरीत ये क्षत्रिय जैन, बुद्ध, जैसे अब्राह्मण परंपराओं के प्रबल पोषक थे। मनुस्मृति के अनुसार वे ब्रात्य राजन्य थे। सुविधित है बातय का अर्थ यहां बैन है क्योंकि जैन साधुएवं श्रावकतप, अहिंसा, सयंम (अहिंसा, मत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) वतों का पालन करते हैं।" , सातधर्म मगधराज अजातशत्रु (कृणिक) राज्यविस्तार केलिये लिच्छवियों पर आक्रमण करना चाहता था। उसने अपने मंत्री वस्सकार को बद्ध के पास भेजा और कहलाया कि वाज्जिगण चाहे कितना ही शक्तिशाली हो, मैं उसे पूर्ण विनाश कर देना चाहता है। इस कार्य की सफलता केलिये उपाय बतलाइये। यह कहकर सावधान होकर उनके वचन सुनो और आकर मुझे बताओ। तथागत का वचन मिथ्या नहीं होता। बद्ध ने मंत्री के वचन सुन कर उसे कोई उत्तर नहीं दिया। पर अपने शिष्य आनन्द के कुछ प्रश्न पूछे हुए निम्नलिखित सात परिहानिय धर्मों का वर्णन क्या। १. हे आनन्द! जबतक वज्जि पूर्णरूप से निरंतर परिषदों का आयोजन करते रहेंगे
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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