SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२. अत्रियकुंड ३. जिनवर्धन सूरि कृत पूर्वदेश चैत्यपरिपाटी स्तवन वि. सं. १४६१ से १४८६ के बीच में इस चैत्यपरिपाटी स्तवन में लिखा है कि सिद्धगणराय सिद्धत्थकुल मंडनं रुद्द-दालिद खंडणं। बमणकंडपुरी थुणऊ जणरंजण खत्तियाकंड गामम्मि वीरजिण ४. श्री जिनवर्द्धन सरि कृत रास वि सं १४८९ में रचित इस रास में उनके पांच वर्षों तक पूर्वदेश में विचा। कर नाना धर्म प्रभावनाएं करने का उल्लेख है। जिन में पावापुरी, नालंदा. कंडग्राम, काकंदी की यात्रा का भी वर्णन है। उन्होंने स्वयं १४६७ वि.सं. पर्वदश चैत्यपरिपाटी की रचना की. जिस मे ब्राह्मणकंड, क्षत्रियकंड और काकंदी की यात्रा करने का उल्लख किया है। ५. उपाध्याय जयसागर द्वारा लिखित प्रशस्ति उपाध्याय जी के 'द मं १५३४ मे राजगही में प्रतिष्ठादि कराने के अभिलख हैं। उन्होंने वहां जाकर क्षत्रियकंड की यात्रा की थी। इन के द्वाग लिखित वि. सं. १५२५ में आवश्यक पमिका और दशवैकलिक वृत्ति की प्रशास्ति में इस यात्रा का उल्लेख पाया जाता है। ६. कवि हंससोम कृत तीर्थमाला इस तीर्थमाला मे लिखा है कि वि स. १५६५ में इन्होंने भगवान महावीर के जन्मस्थान क्षत्रियकंड तथा नौवें तीर्थकर मर्वािधनाथ के जन्मस्थान काकंदी आदि तीर्थों की यात्राए की थीं "हवइ चालिया क्षत्रियकंड मनि भावधरीजइ। तीस कोम पंथई गया देवल देखईजइ।। निर्मल कुंडइ करी म्नान धोअति पहिरीजइ। वीरनाह वंदी करी महापूजा रचीजइ।। बालपणि क्रीड़ा करी ए देखि आंवला रुख। राय सिद्धार्थ घरई निरखई पेखतां गइ त्रिस-भूख ।।२३।। दोह कोस पासइ अच्छइ माहणकुडंगाम
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy