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________________ क्षत्रियकह - १२१ लिखा है कि वि.सं. १३५२ में श्री जिनचंद्र सूरि के उपदेश से वाचक राजशेखर सुबुद्धिराज, हेमतिलक गणि, पुण्यकीर्तिगणि, रत्नमदिर मुनि के साथ बडगांव नालंदा के निकट गौतमस्वामी के जन्मस्थान में पधारे। वहां के ठक्कर रत्नपाल, सा. चाहड़, प्रधानश्रावक प्रेषित भाई हेमराज वांचू श्रावक युक्त सा. बोहित्थ पत्र मूलदेव श्रावक ने कौशांबी, वाराणसी, काकंदी, राजगृही, पावापुरी, नालंदा, क्षत्रियकंडग्राम, अयोध्या, रत्नपरी आदि जिनजन्म आदि पवित्र तीर्थों की यात्रा की। उसी श्रावकसंघ के साथ समुदाय सहित राजशेखरगणि ने हस्तिनापर तीर्थ आदि की यात्रा करके राजगही के समीपवर्ती उद्दड़ विहार में चतुर्मास किया। यहां मालारोपन आदि नन्दीमहोत्सव हुए। ____ध्यानीय है कि क्षत्रियकंड की यात्रा नालंदा की यात्रा के बाद और अयोध्या की यात्रा से पहले का उल्लेख है। अतः क्षत्रियकंडग्राम नालंदा, राजगही के निकट गंगानदी के दक्षिण में था। इस भत्रियकुंडग्राम की भगवान महावीर के जन्मस्थान के रूप में संघ ने यात्रा की। इस से स्पष्ट है कि वैशाली को न तो जन्मस्थान की मान्यता थी और न ही इसे सामान्य तीर्थ की मान्यता थी। इसी लिये यात्रासंघ ने यहां की यात्रा नहीं की। यद्यपि कौशांबी की यात्रा के बाद अथवा पहले भी वैशाली रास्ते में थी। २. श्री जिनोदय सरि द्वारा विज्ञप्ति _ वि. सं. १४३१ में अयोध्या स्थित श्री लोकहिताचार्य के प्रति अहिलपर से श्रीजिनोदय सरि द्वारा प्रेषित विज्ञप्ति महालेख से विदित होता है। कि लोकहिताचार्य इतः पूर्वमंत्रीमंडलीय वंशोभव ठक्कर चंद्रांगज सश्रावक राजदेव आदि के निवेदन से विहार करके राजगृही आदि में विचरे थे। उस समय वहां कई भव्य जिनप्रासादों का निर्माण हुआ था। सरि जी यहां से बाहरण कंडक्षत्रियकुंड जाकर यात्रा कर आए और वापिस राजगृही आकर विपुलाचल वैभारगिरि पर जिनबिंबादि की प्रतिष्ठाएं कराई। इस लेख से भी यहीं संकेत मिलता है कि क्षत्रियकुंवाह्मणकुंग राजगृही के निकट गंगानदी के दक्षिण में थे।
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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