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क्षत्रियकुंड
है। बौद्ध एवं बौद्धेतर दोनों ही मिलजुल कर रहते हैं। यहां कई सी संचाराम खंडहर हैं। तीन पाँच ऐसे हैं जिनमें बहुत ही कम भिक्षु रहते है १०-२० मन्दिर देवताओं के हैं जिनमें अनेक धर्मानुयायी उपासना करते हैं जैन धर्मानुयायी कॉफी संख्या में है। वैशाली राजधानी कुछ-कुछ खंडहर है। पुराने नगर का पैरा लगभग ६०-७० ली (१२-१४ मील) है और राजमहल का विस्तार ४-५ ली ( लगभग १ मील) के घेरे में है। बहुत थोड़े लोग इसमें निवास करते हैं। राजधानी के पश्चिमोत्तर ५-६ ली की दूरी पर एक संघाराम (बीद्धमठ) है उसमें कुछ बौद्धभिक्षु रहते हैं ये लोग सम्मतिय संस्था के अनुयायी हैं।
उपर्युक्त सारे विवरण में विशेषरूप से बौद्ध संप्रदाय केलिए ही लिखा गया है क्योंकि इस विवरण में बौद्ध यात्री ह्वेनसांग के लेखों का आधार है। जैनधर्म के विषय में कोई विशेषजानकारी नही है अतः यहां पर दो तीन मुद्दों पर ही विचार करना है
१. लेखक ने विशालगढ़ के पश्चिम में ५२ पोखर के उत्तरी मोड़ पर एक छोटे से आधुनिक जैनेतर मन्दिर का उल्लेख किया है और इस क्षेत्र में, बौद्ध, वैष्णव आदि संप्रदायों की मूर्तियों के प्राप्त होने का भी जिक्र किया है। एवं जैन तीर्थंकर की मध्यकालीन खंडित मूर्ति भी प्राप्त हुई है ऐसा लिखा है । २. सैकड़ों मुद्राएं मिली हैं जिन पर जैनेतर राजा रानी अथवा उनके कार्यालयों आदि के लेख अंकित हैं । ३. कोलुआ, बनिया और बसाढ़ एक ही पंक्ति में एक-एक मील की दूरी पर हैं । ४. इस क्षेत्र में आम और केले के वृक्षों की विशेष पैदावार है । ५. ह्वेनसांग के समय में वैशाली में जैन धर्मावलम्बियों की संख्या काफी थी । ६. विदेह में प्राचीनकाल में बौद्धस्तंभ और स्तूप विद्यमान थे जो वर्तमान में प्रायः खण्डित है।
आचार्य श्री विजयेन्द्र सूरि ने क्षत्रियकुंड को वैशाली में सिद्ध करने के लिए उपर्युक्त इन बातों का आलंबन लिया है।
उपर्युक्त संदर्भ पर विचारणा
१. यहां जो जैनतीर्थंकर की मध्यकालीन खंडित मूर्ति मिलने का उल्लेख किया है। वह विक्रम की १२/१५ शताब्दी की है इस पर कोई लेख अथवा लांछन अंकित होने का भी उल्लेख नहीं किया गया अतः यह महावीर की प्रतिमा नहीं है और न महावीरकालीन है। यदि यह मूर्ति महावीर की होती तो आचार्य श्री इसका नाम और समय फोटो आदि अपने मत की पुष्टि केलिए अवश्य देते
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