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________________ १०१. क्षत्रियकंड फट मे कछ कम है। ये दोनों नियां एक दमरे में अत्यन्त निकट हैं। उमन लिखा है कि उत्तर पश्चिम में अशोक द्वाग बनाया हुआ एक स्तूप है और ५०-६० फट ऊंचा पत्थर का एक स्तम्भ है इसके शिखर पर सिंह की मति है। म्तम्भ के दक्षिण में एक तालाव है जव बद्धदेव इमम्थान पर रहते थे तब उनके उपयोग केलए ही यह निर्माण किया गय था। पोखर मे कुछ दर पश्चिम में एक दसग मतप है यह उस स्थान पर है जहां वन्दरों ने बद्ध को मध अर्पण किया था। पोखर के उत्तर पर्व के कोने पर बन्दर की एक मूर्ति भी है। ___ आजकल की र्थाित यह है कि कोलुआ में एक स्तम्भ है। जिस पर मंह की मति है उसके उत्तर में अशोक स्तम्भ है इमके दक्षिण की ओर रामकंड पोखर है जो कि बौद्ध इतिहास में मर्कटहद के नाम में प्रमिद्ध है। ___ यहां की जनता अशोकम्तम्भ को भीम की लाठी कहती है यह मि में : फट २ इंच ऊंचा है। स्तम्भ का शीर्षभाग घंटी के आकार का है। जो फट १० इंच ऊंचा है। इसके ऊपर के प्रस्तर खंड पर उत्तर्गाभमख एक सिंह बैठा है। जनरल कनिंघम ने चौदह फट नीचे तक इमकी खदाई की थी नव भीम्तम्भ उन्हें उतना ही चमकीला मिला था जितना कि वह ऊपर था। म्तम्भ के उत्तर में बीम गज की दरी पर एक ध्वस्त म्तप है यह १५ फट ऊचा है। धरती पर इसका व्याम ५ फट है इममें लगी ईंटों का आकार १-१ इच है। ग्नप क ऊपर एक आधुनिक मंदिर है। इसमें वोधिवृक्ष के नीचे म्पशंमद्रा में बैठी बढ़ की एक विशाल मति है। जो मकट हार और कणंभषण पहने है। (अलंकन मनि बोधिमत्व की कहलाती है रोमी अलंकृत मतियां बद्धदेव की बोधि प्राप्ति में पहली अवस्था की हैं। इस मनि के दोनों तरफ अलकागं में ऑकन बैटी हट मतियां भी हैं। उनके हाथ इस प्रकार हैं कि मानो बोधि प्राप्ति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं इन दोनों छोटी मनियों के नीचे निम्नलिखित पोक्तयां नागर्ग म उत्कीर्ण है- १. देय धर्मोऽयार प्रवर महायान थिनः कणिकोछाहः (उत्साहम्य) मा (1) णक्य सुत्तस्म। २. यदत्र पुण्य तदभवत्वाचार्यों-पाध्याय माना पितोगत्मानञ्च पवांगमम (क) : न्वा म कल (त) न्वगगेग्ननर (जाना वा धृयेति)। अथांत माणिक्य के पत्र लेखक और महायान के पग्मानयायी उगाह का धर्म प्रवंतक किया गया यह दान है। इसम जो भी पण्य हा वह आचार्य उपाध्याय, माता पिता और अपने में लेकर ममग्न प्राणिमात्र क अनन्नकल्याण लिये हो। म्तम्भ मे ५० फट की दर्ग पर गमहट अथवा मकटहर है। हम किनार कटागारशाला थी इमी शाला में ही बद्ध ने अपने निवांण की अपन शिष्य आनन्
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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