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________________ धत्रियकर (९) यदि प्राचीन शास्त्र माहित्य में अथवा किसी विदेशी या भारतीय विद्वान ने विदेह जनपद में जैनों की संख्या अधिक लिखी या देखी हो और उससे अनमान किया हो कि भगवान का जन्मस्थान वैशाली है तो यह भी कोई नर्कमंगन नहीं है। मा जरूरी नहीं है कि जिम प्रदेश में धर्मानयायिों की संख्या अधिक हो वहां उमके धर्मप्रवर्तक का जन्मस्थान भी हो। हम वर्तमान में देखते हैं कि गजगत प्रदेश अहमदावाद में जैनों की संख्या अधिक है तो इसका कारण यह नहीं है कि भगवान महावीर का जन्मस्थान गजगत या अहमदाबाद था। (१०) शास्त्र और इनिहाम कहता है कि भगवान महावीर अपने जीवनकाल में कभी भी गजगत नहीं गये इलिये जैन जनसंख्या को अधिक देख कर मान लेना कि गजगत-अहमदावाद भगवान महावीर का जन्म स्थान है कितनी भयंकर भल है। प्राचीनकाल में भगवान महावीर के पिता सिद्धार्थ का गज्य मगध जनपद में जमई मडविजन में लच्छआड़ के निकट क्षत्रियकंड में था यह बात आगम मम्मन होने हा भी वर्तमान में वहां जैन धर्मानुयायी न होने म यह मान लेना कि न तो वहां मिद्धार्थ का गज्य था और न हीं भगवान महावीर का जन्म हुआ था। इसमें बढ़कर और क्या भयंकर भल हो मकती है? शास्त्र के माथ इतिहाम और भगोल भी स्वीकार करते हैं कि यहीं राजा सिद्धार्थ का निवासस्थान था एव यहीं भगवान महावीर का जन्म हुआ था। र्याद इस दलील को न मानकर इम क्षत्रियकंड को भगवान महावीर का जन्मस्थान मानने में नकारते है तो यह बात विदेह वैशाली पर भी लाग हो सकती है क्योंकि वर्तमान में वहां जैनधमांनयायी एकदम नहीं हैं। अतः यह स्पष्ट है कि ऐमी 'भ्रामक कल्पना एकदम खोखली हैं। मी कर्याक्तयों से भी भगवान महावीर का जन्मस्थान वैशाली कदापि स्वीकार नहीं किया जा सकता। राजा सिद्धार्थ का पुत्र राजा नन्दीवर्धन (११) अंग-मगध के गजा अजातशत्रु (कोणिक) ने उन मेना लेका वैशाली पर प्रलयकारी और विदेह जनपद के महाराजा चेटक (अपने नाना) के माथ १० वर्षों तक प्रलयंकारी भयंकर युद्ध करके उन्हें परास्त किया। पश्चात वैशाली में गधों मे हल चलाकर उसे नष्ट-भ्रष्ट (तहस-नहम) कर दिया एवं उमका नामो-निशान मिटाकर विदेह गणतंत्र को अपने राज्य में मिला लिया। यदि यह घटना भगवान महावीर के जीवनकाल में हुई। यदि कहंग्राम (त्रियकडं-ब्रहमणकडं) वैशाली के मोहल्ले होते तो उस मोहल्ले के उमगव वड़ा भाई गजा नन्दीवर्धन होता तो उसका राज्यक्षेत्र भी वैशानी के माप ही
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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