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________________ रौतहासिक विजयधर्म सरि का जन्म वला (सौराष्ट्र) में हुआ किन्तु काशी में एक आदर्श शिक्षण संस्था "यशोविजय जैन पाठशाला" स्थापित कर उसे अपना कार्यक्षेत्र बनाने से काशीवाले आचार्य कहलाये (५) उन्हीं का शिष्य भनि विद्याविजय जी का जन्म गजगत प्रदेश में हआ पर उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र-वीग्तत्व प्रकाशक मंडल (जैनशिक्षण संस्था) शिवपुरी (ग्वालियर) को बनाया इलिये वे शिवपी के संत कहलाये। (६) स्थानकवामी मंप्रदाय के उपाध्याय अमरमनि का जन्म उत्तरभारत मे हुआ पर उन्होंने राजगृही (मगध जनपद) में विरायतन को अपना कार्यक्षेत्र बनाया, इस लिये वे राजगृही विरायतन के संत कहलाये। (७) थावक हीगलाल दग्गड़ शास्त्री (इम शोधग्रंथ के लेखक) का जन्म गजगंवाला पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ पर वर्तमान में इनका निवास कार्यक्षेत्र दिल्ली में होने से दिल्लीवाले कहलाये (८) र्याद कोई गृहस्थ पंजाब, गजस्थान, गजगन अथवा अन्य किमी प्रदेश में जाकर मद्राम में आवाद हो जाय और उसे अपना कार्यक्षेत्र बना ले ता वह मद्रासवाला कहलायेगा। (.) कोई भारती अमर्गका. केनंडा, इंग्लैंड आदि में जा कर आवाद हो जावे और उसे अपना कार्यक्षेत्र वना ले तो वह उसी देशवाला कहलायेगा। यानि अपने-अपने कार्यक्षेत्र के कारण यह उस-उस क्षेत्र का कहलायेगा। (१०) भगवान महावीर के प्रवचन को सुनकर उनके धर्म को स्वीकार करने वालों को भी शास्त्र की टीकाएं करनेवाले आचार्यों ने वैशालिक श्रावक कहा है। यानि अपने-अपने कार्यक्षेत्र के कारण वे लोग उम उम क्षेत्र के कहलाये। मा होने पर भी यदि कोई शोधकना उम क्षेत्र को ही उसका जन्मस्थान मान. ले तो उसकी यह धारणा मन्य नहीं मानी जा मकती। इसी प्रकार यदि महावीर का कार्यक्षेत्र अधिकतर विदह रहा है या वैदेही गजकन्या त्रिशला के कारण वैदही रहा भी हो तो उनका जन्मस्थान विदेह अथवा वैशाली मान लेना 'भ्रामक और खोखलापन नहीं है क्या? अतः यहा मा ही हआ है। क्योंकि विदह एव वेलिए शब्दों में भगवान महावीर का जन्मस्थान वैशाली का एक मोहल्ला मानने में अन्य सभी शास्त्रीय प्रमाण इसके विगंध में है। इस मान्यता का कोई ममर्थन नहीं करना। इसका विस्तार में हम पहले विवेचन कर आये हैं। यही कारण है कि आनिक शोधकनां भल के पात्र बने हैं। पर इस में संदेह नहीं कि अंग-मगध-विदेह जनपदों में जैनधर्म की प्राचीनकाल में प्रधानता रही है। इसलिये विदेह जनपद में भी जैन धमांनयायियों की अधिक संख्या थी। कारण यह था कि यहां भगवान महावीर के पर्ववर्ती नथा भगवान महावीर ने तथा उन के वाद उन की परम्पग के श्रमणमंघों ने इम जनपद में नितात विचरण करके जैनधर्म का व्यापक प्रचार किया। जिम में जैनधर्म खुब फला-फला और अनुयायियों में वृद्धि होती गयी।
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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