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________________ (ix) भाप समाज के वयोवृद्ध कार्यकर्ता हैं। वयोवृद्ध होते हुए भी आपका उत्साह और पुरुषार्थ युवा जैसों को भी मात देता है। सब कहा जाय तो आप को बुढ़ापे ने नहीं जीता परन्तु आपने बढ़ापे पर विजय प्राप्त की है। सादा जीवन, कर्मठ वृत्ति प्रमनिष्ठा के साक्षात् प्रतीक हैं। दृढ़ प्रतिक है, धर्मश्रद्धाल, व जैनधर्म के प्रचारकों के प्रेरणास्रोत होने से जैनसमाज के सभी संप्रदायों के कई आचार्यों, मुनियों और प्रतिष्ठित श्रावक-श्राविकाओं से आपका अच्छा परिचय है। आपकी शास्त्र प्रवचनपद्धति अत्यन्त रोचक और प्रभावोत्पादक है। शिक्षण देने की शैली अत्यन्त प्रशंसनीय है। वक्तृत्वकला आकर्षक है। शंका समाधान करने की कला आकर्षक चमत्कारी एवं अलौकिक है। १९७९ ई. में कांगड़ा में हुए श्री समुद्र सूरि जैन दर्शनशिविर में अपनी इस कला से विद्यार्थियों को मंत्रमुग्ध कर दिया था। जैनसंप्रदायों और जैनेतर वाङ्मयका गहन-गंभीर चिंतनशील अभ्यास किया है। पर्यषण तथा दसलाक्षणी आदि पर्यों में आपके शास्त्रप्रवचनों से लाभान्वित होने केलिये श्वेतांबर और दिगम्बर जैनसंघ समानरूप से सदा निमंत्रण देते हैं। लेखनशैली में गंभीरता, प्रौड़ता और सरलतारूप गंगा, जमुना, सरस्वती त्रिवेणी. का संगम है। जैनदर्शन और इतिहास के प्रति आप की सच्ची-आस्था और अनुराग अत्यंत प्रशंसनीय है। जो कि आप के द्वारा लिखे हुए ग्रंथों से प्रत्यक्षरूप से दृष्टिगोचर होती है। आपकी अपनी लेखनी द्वारा राष्ट्रभाषा हिन्दी में अनेक उत्तम पुस्तकों का सृजन तथा अन्य भाषाओं से भाषांतार भी प्रकाशित हुए हैं। लगभग ५० प्रकाशित एवं लगभग १० तैयार अप्रकशित पुस्तकों का यह लेखक अभिनन्दनीय है। कई पुस्तकों की दो-तीन-चार आवृत्तियां भी प्रकाशित हो चुकी हैं। आपकी अधिकांश पुस्तकें अभी अप्राप्य हैं। आप की पुस्तक "निग्गंठ नायपुत्त प्रमण भगवान महावीर तथा मांसाहार परिहार" मैंने आद्योपांत पढ़ी है। इस पुस्तक के द्वारा आपकी अनुपम-प्रतिभा की झलक मिलती है। इस एक पुस्तक द्वारा यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आपकी अन्य पुस्तकें भी कितनी उच्चकोटि की होंगी। इस पुस्तक केलिये आपको श्री आत्मानंद जैनमहासभा उत्तरीभारत ने वि. सं. २०२२ को अक्षयतृतीया के दिन श्री हस्तिनापुर में वर्षीयतप-पारणा महोत्सव पर समस्त-भारत के सम्मिलित चतुर्विध संघ के समक्ष पुरस्कृत कर बहुभान-पूर्वक सम्मानित किया गया। इसी महत्वपूर्ण पुस्तक में जैन-निग्रंथ-मुनियों तथा श्रमण भगवान महावीर पर लगाये गये मांसाहार के आरोपों का वेद, पुराण, स्मृति, उपनिषद, त्रिपिटक, कोष, जैनागम, तकं, चिकित्सा-शास्त्र, निघण्टु तथा जैन-आचार-विचार, सिद्धान्त आदि के दृष्टिकोणों को लेकर प्रतिकार किया है। धर्म पर अटूट-दृढ़ श्रद्धा होते हुए भी आप रूढ़िवादी नहीं है। २७ वर्ष की आयु में मापने अन्तर्जातीय, अन्तर-प्रांतीय और अन्तर-संप्रदाय में विवाह बिना दहेज लिये, बिना किसी आडंबर और दिखावे के आठ व्यक्तियों की बारात लेकर कन्या पक्ष के नगर में उनके घर पर जैन-विवाह-विधि से बड़े आदर्श रूप से किया। माताश्वेतांबरजन है तो आपकी पत्नी सुश्री कलावती दिगम्बरजैन संप्रदाय की थीं। आप पंजाब के और आप की पत्नी उत्तरप्रदेश की, आप ओसवाल हैं और आप की पत्नी पद्मावती पोरवाल। सन् ईस्वी १९६६ (वि. २०२३) में आगरा में आप की पत्नी का देहांत हो गया। बाप अपने पीछे पांच पुत्र और दो पुत्रियां भरापूरा परिवार छोड़ गई। आपकी पत्नी का देहांत हो जाने के पश्चात् दिल्ली में शांतिमूर्ति, जिनशासनरत्न, राष्ट्रसंत आचार्य श्री
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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