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________________ भांत मान्यताओं की समीक्षा अत्रिवाणी का अर्थ रानी भी होता है और देवी भी होता है। सामान्यतः भारतीय राब प्रयोग की परम्परा यह है कि क्षत्रियवंश से सम्बन्धित होने के कारण नाम के पीछे पनः पुनः क्षत्रिय शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता। परन्तु यदि अभियवंश से संबोधित होने पर जब कोई वीरोचित कार्य करता है अथवा राषकल से संबोधित होता है तो कहा जाता है कि क्षत्रिय ही ऐसा ही हो! यह उसके प्रति. सम्मान प्रकट करने केलिये क्षत्रिय शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त जैन ग्रंथों में कितने ही स्थानों पर त्रिशला माता केलिये देवी शब्द का भी प्रयोग किया गया है। दिगम्बर पूज्यपाद कृत दशभक्ति में यह पक्ति इस प्रकार है (क) देव्या प्रियकारिण्यां सुस्वप्नान संप्रदर्शय।। (ख) दधार विशलादेवी मुदिता गर्भमद्भुतम्।।३३।। (ग) उपसृत्यांगतो देव्याश्चास्वामिकां दो।।३४।। (घ) देव्या पाश्र्वे च भगवन्प्रतिरूपं निधाय सः।।५५|| (ड) उवाच त्रिशलादेवी सदने क्षमस्त्वागमः।।१४१।। (च) तस्स घरे तं सहार तिसला-दवी कुच्छसि ।।११।। (छ) सिद्धत्यो य नरिंदो तिसला देवी रायतो ओ य ।।६८।। (नेमिचंद्र महावीर चरित्र) त्रिशला माता के नाम के साथ सात संदर्भो में देव शब्द का प्रयोग यहां पर दिया ही है। खोज करने से बहुत कुछ और भी मिल सकता है। अतः त्रिशला-रानी अवश्य थी। अब संदेह को कोई अवकाश नहीं रहा। ९. डा, हानले ने सन्निवेश का अर्थ मोहल्ला लिखा है और डा. जैकोवी ने इस का अर्थ पड़ाव लिखा है। दोनों ने ही इस का अर्थ भ्रामक किया है। क्योंकि सन्निवेश के .जहां बहुत से अर्थ हैं वहां एक अर्थ नगर भी है- (पाइय. सह-महण्णवो कोश पृ. १०५४) में सन्निवेश के निम्न अर्थ किये हैं। (क) १- नगर के बाहर का प्रदेश। २. गांव-नगर आदि स्थल। ३. यात्रियों का डेरा। ४. ग्राम-नगर आदि। ५. रचना आदि। (ख) भगवतिसत्र सटीक प्रथम खंड पृ.८५ में सन्निवेश का निम्न अर्थ किया हैं। सन्निवेशोघोषादि एषां द्वन्द्व सतत्सति अथवा प्रामावो ये सन्निवेशस्ति तथा तेष।। (ग) निशीथर्णिमें सन्निवेश का अर्थ दिया है किसत्यवासण थाणं सन्निवेसो गामे वा पीडितो सन्निवेटो जत्तागतो वा लोगे मन्निवेटो सो सन्निवेसं पण्णते।। अभिधान राजेन्द्र भाग ७
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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