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________________ त्रियकंड यह बात ध्यानीय है कि क्षत्रियकुल के राजवंशीय राजकुमार में ही तीर्थकर बनने की योग्यता और सामर्थ्य होता है। उत्तम कुल, जाति, खानदान के उत्तम संस्कारों का जन्म से ही उत्तम प्रभाव रहता है। इसलिये प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव से लेकर महावीर तक सब क्षत्रिय राजकुल के ही सपूत थे। पुनः कहते हैं कि "क्षत्रियवंशविनाऽपि राजकुलानि स्परित्याह क्षत्रियकुलत्वरित।" अर्थात् क्षत्रियकुल के बिना भी राजकुल होते हैं। (यथा-ब्राह्मण, वैश्य, शद्र कलों के भी राजा होते हैं।) इसलिये यहां क्षत्रियकल कहा है। यानि क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और क्षत्रियाणि रानी त्रिशला। ७. डा. हानले का मत है कि कोल्लाग सन्निवेश भगवान महावीर का जन्म स्थान था। यह विदेह जनपद की राजधानी वैशाली का एक मोहल्ला था। कोल्लाग वैशाली का मोहल्ला होने से वैशाली में ही भगवान महावीर का जन्मस्थान माना जाएगा। हम लिख आये हैं कि विदेह का कोल्लाग और वैशाली दोनों अलग-अलग नगर थे। वैशाली गंडकी नदी के पूर्वीतट पर थी। और कोल्लाग एवं वाणिज्यग्राम गंडकी नदी के पश्चिमीतट पर थे। शास्त्रों के प्रमाण देकर हम यह भी स्पष्ट कर आये हैं कि भगवान महावीर की जन्मभूमि न तो कोल्लाग थी न वैशाली, परन्तु मगध जनपद में जमुई सबडिविजन में लच्छआड़ के निकट कुंडलपुर नगर (क्षत्रियकुंड) में थी। यहां भगवान ने ३० वर्ष की आयु नक गृहस्थ जीवन बिताया था। इस नगर के बाहर णायखंडवणउज्जाण में भगवान ने दीक्षा ग्रहण की थी। दीक्षा लेने के बाद उसी दिन यहां मे स्थलमार्ग में वे कुमारग्राम पहुंचे एवं रात वहीं व्यतीत की। अगले दिन प्रातःकाल यहां में कोल्लाग सन्निवेश गये। यहां बहुल ब्राह्मण के घर उन्होंने छठ (दो उपवाम) तप का पारणा खीर से किया। शास्त्र में कहा है कि खंडवणउद्यान में दीक्षा लेने के बाद भगवान महावीर विहार करके कुमारग्रम गये। वहां जाने केलिये दो गम्ते थे- एक जलमार्ग, दमग स्थलमार्ग। भगवान स्थलमार्ग से गये तब दिन का एक मुहूर्त (४८ मिनट) शेष था159 ८. जेकोबी का मत है कि जैनग्रंथों में त्रिशला माना को मर्वत्र भत्रियाण रूप में लिखा गया है देवी रूप में नहीं। हम ऊपर लिख आय हैं कि कोशकागं और टीकाकारों ने क्षत्रिय शब्द का अर्थ गजा भी किया है। उसी के अनमार
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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