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________________ पाकिस्तों से सुना। १९ की वरीयता को बखाना गया है। निम्न उदाहरण विचारणीय है जो भगवान् महावीर को वाणी से उद्भूत है जिस प्रकार स्नान करने के लिए बाहर एक जलाशय होता है उसी प्रकार आन्तरिक स्नान के लिए अहिंसा घमरूप जलाशय है जो कि कमरूप मल को दूर करन म समय है तथा जिस प्रकार तडाग म सोपान आदि लगे होत है उसी प्रकार अमरूपी तडाग के ब्रह्मचय आदि शान्ति-तीय है जो कमरूप मल को जड से दूर करने म तथा मिथ्यात्वादि कालष्यरहित होने से आत्मा की प्रसन्न लेश्या के सपादन म समथ है। सो इस प्रकार के धमरूप जलाशय म स्नान किया हुवा आमा कममल से रहित होकर निष्कलक हो जाता है । जीव उस परमशीतलता को प्राप्त करता हुआ समस्त अन्तर और बाह्य के दोषो को दूर करता है। इसी स्नान के द्वारा कुशल पुरुषो ने और समाधिस्थ योगी महर्षियो न उत्तम स्थान को परमधाम को प्राप्त किया है। मासारिक सवार के लिए धम का सम्बल आवश्यक है चाहे वह कोई भी क्षत्र क्यो न हो । यहाँ तक कि नीति निर्धारण म भी धर्म की उपयोगिता वरदान स्वरूप है। तभी तो महावीर ने कहा है कि धमहीन नीति जगत् के लिए अभिशाप ह और नीतिहीन धम कोरी वैयक्तिक साधना है। अत ह साधक | जो व्यवहार बम से उत्पन्न है और ज्ञानी पुरुषो ने जिनका सदा आचरण किया है उनका आचरण करनवाला परुष कभी निन्दा को प्राप्त नहीं होता। घम की उपयोगिता इसी स्वाधीन एव स्थायी सुख को प्राप्त कराने म है जो अथ काम आदि किसी भी अन्य उपाय से प्राप्त नहीं हो सकता। धम से ही मनुष्य की सच्चे स्वाधीन सुख की इच्छा की पूर्ति हो सकती है। विवेक-दृष्टि से सोचा जाय तो ससार के समस्त पदार्थ जिनसे मनुष्य सुख की बाशा रखता है अघ्रय है अशाश्वत है। प्रत्येक पदाथ जिसम मनुष्य सुख १ पम्मेहरए बम्भे सन्ति तित्थे अणाविले अत्तपसन्न लेसे । जहिं सिणाया विमला विसुया महारिसी उत्सम ठाण पत्ते॥ उत्तराध्यपन १२।४६ ४७ । २ धम्मज्जिय च ववहार बुढे हायरिय सया। तमापरन्तो ववहार मरह नाभिगच्छई ।। वही ११४२.
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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