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बौद्ध तथा जैनधर्म
भारतीय चिन्तन और सदाचार के इतिहास म बौद्ध और जन परम्पराओं का विशेष महत्व है। हिन्दू जोवन की रूढियो और विश्वासो का प्रत्याख्यान करते हुए बद्ध के विचार स्वतत्र धर्म के रूप म स्थापित हुए। उनकी उक्तियां शनै शनै इस तरह विकसित हुइ कि बद्ध के अनुयायियो ने न केवल अपने सबो और विहारो का विकास किया बल्कि निश्चित प्रकार की दाशनिकता त्कशास्त्र तथा आचारशास्त्र का भी पूरी तरह विकास किया । बौद्धधर्म दशन साधना और आचार तीनो क्षत्रों में इतना प्रभावशाली हुआ कि आषो दुनिया पर उसका साम्राज्य छा गया। इसके साथ ही एक जन भाषा भी इस धम की भाषा के रूप म विकसित हुई। ब्राह्मण धम-व्यवस्था के पास यदि वदिक और सस्कृत जमी दो भाषाय थी और वेद स्मृति तथा उपनिषद जसे शास्त्र थे तो बौद्धो के पास पालि जमी भाषा थी पिटक थ निकाय थे और धम्मपद था। ब्राह्मण धम-व्यवस्था के पास ऋषि मुनि आश्रम कुटी मदिर तपस्वी साध और योगी थ तो श्रमण घम व्यवस्था के पास मठ विहार आराम ( बगीचे) भिक्ष तात्रिक और चमत्कारी धम प्रचारक थे। भाषा दशन एव सगठन तीनो के कारण बौद्धधम ब्राह्मणघम को निष्प्रभ करन म सफल रहा । ठीक इसी तरह जैन धम का उद्भव एक ऐसे विचारक तपस्वी की चिन्ता से हुआ था जो ब्राह्मणधम की रूढियो से प्रसन्न नही था । ब्राह्मण शास्त्रो की व्यर्थता भगवान् माबोर के मस्तिष्क म थी । जितेन्द्रिय महावीर ने जिस चिन्तन का सूत्रपात किया था उसे दर्शन तकशास्त्र और साधक मुनिम हल का सहयोग मिला । मन्दिर मति शास्त्र और मुनियो के साथ जैनधम के पास बौद्धो की तरह एक निजी अभिव्यक्ति की भाषा भी थी। इस भाषा को जन प्राकृत कहा जाता है । इसीलिए जनवम के अनुयायियों ने भी ब्राह्मण व्यवस्था का पूरी तरह से उत्तर दिया और उसे निष्प्रभ बनाया । बौद्धधम को राजशक्ति का समथन मिला उसी तरह जनवम को भी राजाओ तथा श्रेष्ठियो का समथन मिला। इस तरह बौद्ध तथा जैन दोनो धम-व्यवस्थाय ब्राह्मण यवस्था के समानान्तर खडी हुइ । इन स्पर्षी यवस्थाओ न अपने धर्मशास्त्रो से श्रीमद्भगवद गीता के समानान्तर दो पुस्तको का प्रचारतत्र भी विकसित किया । गीता में १८ अध्याय है तो बोडयम के धम्मपद म २६ वग्ग है । इसी तरह जनों का धमग्रन्थ उसराध्ययनसूत्र खडा हुआ। इसमें भी ३६ अध्ययन है । इस तरह यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि बौद्ध तथा जैनधम ब्राह्मण चिन्तन की शाखायें नहीं है बल्कि समानान्तर धम-व्यवस्थाय है और इनका