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________________ ७८ बोडसमा नव (पाप) अचेतन का चेतन के साथ सम्बन्ध करानेवाले कारण का निरोष (सबर) चेतन से अद्यतन का अशत पृथक्करण (निर्जरा ) तथा चेतन का पण स्वातन्त्र्य ( मोक्ष )। इन चतन अचेतन और उनके सयोग वियोग की कारण-कार्य-शृङखला के विकाल सत्य होने से इन्ह तथ्य या सय कहा गया है। इन्ह मुख्यत पांच भागों में विभक्त किया जा सकता है-- १ चतन और अचेतन तत्व-जीव और अजीव २ ससार या द ख की अवस्था-बघ ३ ससार या दु ख के कारण-पुण्य पाप और आस्रव ४ ससार या दुख से निवृत्ति का उपाय--सवर और निजरा ५ ससार या दु ख से पूर्ण निवृत्ति-मोक्ष । ससार या दुख का कारण कर्म बन्धन है और उससे छटकारा पाना मोक्ष है। पतन ही बन्धन और मोक्ष को प्राप्त करता है तथा अचतन ( कम ) से बन्धन और मोक्ष होता है। बबन म कारण ह पुण्य और पापरूप प्रवृत्ति जिससे प्ररित हाकर अचेतन ( कर्म ) चतन के पास आकर बध को प्राप्त होत हैं। इन अचतन कर्मों के भाने को रोकना तथा पहले से आये हुए कर्मों को पृथक करने रूप सवर और निजरा मोक्ष के प्रतिकारण हैं। इस तरह बघ मोक्ष चेतन अचतन पुण्य पाप आस्रव सवर और निजरा य नौ सावभौम स य होने से तथ्य कहे गये हैं। इसी तथ्य का साक्षात्कार भगवान बुद्ध न भी किया और उन्होन इसका ही एक दूसरे ढग से चतुराय सत्यों के रूप म उपदेश दिया। चूंकि धम्मपद मे कोई स्थायी चेतन व अचेतन पदाय स्वीकार नही किया गया है। अत ऊपर पांच भागो में विभा जित ९ तथ्यो म से प्रथम भाग को छोडकर शेष चार रूपों में वर्णन किया गया है । - १ दुल सत्य है ससार में जम जरा मरण इष्ट वियोग अनिष्ट संयोग आदि द ख देखे जाते है । अतः य सत्य है। २ सुशों के कारण सत्य हैं (दुसमुक्य सत्य) अब दुख है तो द ख के कारण भी अवश्य है । तृष्णा सब प्रकार के दुखों की कारण है। ३ सुखनिरोष सत्य यदि द ख और द ख के कारण है तो कारण के नाश होने पर दुःख का भी विनाश होना चाहिए। १ धम्मपद २७३।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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