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________________ ६ बोर तथा जनधर्म उपर्यत तीना प्रकार के जीव स्थल होने से लोक के एकदेश मे रहते है। ये अनादिकाल से चले आ रहे ह और अनन्त काल तक रहगे परन्तु किसी जीवविशेष की स्थिति की अपेक्षा सादि और सान्त है। इन सभी की स्थिति कम-से-कम अन्त मुहूर्त है तथा अधिक से अधिक वीद्रिय की १२ वष श्रीन्द्रिय की ४९ दिन चतुरिन्द्रिय की ६ मास है। स्पादि के तारतम्य से इनके हजारों भेद हो सकते है। एकेन्द्रिय से केकर चतुरिन्निय तक के सभी जीव तिर्यञ्चों की ही श्रेणी म आते हैं। ४ पवेनिय बीव __ स्पशन रसना घ्राण पक्ष और कण इन पांच इद्रियों से युक्त जीव पोन्द्रिय कहलाते है । इनके मुख्यत चार प्रकार ह जो निम्नलिखित हैं१ लोगे गदेसे ते मव्वे म सम्वत्थ वियाहिया ।। उत्तराध्ययनसूत्र ३६१३ । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय तथा चतुरिन्द्रिय जीव के लिए देखिए । वही ३४१३९ १४९ । २ सतह पप्पडणाइया अपजवसिया विय।। ठिउ पणुच्च साईया सप अवसिया निय ।। वही ३६१३१ । इसी प्रकार नीद्रिय तथा चतुरिद्रिय जीव के लिए देखिए । वही ३६४१४ १५ । ३ वासाइ बारसे व उ धक्कोसेण वियाहिया । बेइन्दिय आउठिई अन्तोमुहत्त जहम्निया ॥ वही ३६॥१३२। एणूणपण्ण होरता उपको सेण वियाहिया । तेइन्दिय माउठिई अन्तोमुहत अहम्निया । वही ३६।१४१ । छच्चेव य मासा उ उक्कोसेण पियाहिया । परिन्दिय आरठिई अन्तोमुहुत जहन्निया । ६.१५१ । ४ वही ३६११३५ ५ परिदिया उजे जीवा घउम्विहा से वियाहिया। नेरइया तिरिक्खा य मणया देवा य आहिया ॥ वही ३६।१५५ ।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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