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________________ धम्मपद में प्रतिपारित तस्वमीमांसा ५९ विष बीच जिनमें स्पर्शन और रसमा दो ही इन्द्रियाँ हों वे दोन्द्रिय जीव कहलाते हैं। इनके पर्याप्त और अपर्याप्त दो भेद किये गये हैं। इसके अतिरिक्त भी इनके अनेक भेद ग्रन्थ में दिखाई देते है। २ त्रीणिय जीव स्पशन रसना और प्राण इन तीन इन्द्रियों से युक्त जीव त्रीन्द्रिय कहलाते हैं । इसके भी पर्याप्त और अपर्यास दो भेद है। श्रीन्द्रिय जीवो के जितने उपभेद है उनके बारे में प्रन्थ में बताया गया है। ३ चतुरिनिय जीव स्पर्शन रसना प्राण और चक्षु इन चार इन्द्रियो से युक्त जीव चतुरिद्रिय जीव कहलाते हैं । ये जीव भी दो प्रकार के हैं पर्याप्त और अपर्याप्त । इनके उपभेदो के बारे म भी प्रथम उल्लेख किया गया है। १ बेइन्दिया उजे जीवा दुविहा ते पकित्तिया । पज-तमपज्जत्ता तेसि भेए सुणेह मे ॥ उत्तराध्ययनसूत्र ३६४१२७ । २ किमिणो सो मगला व अलसा माइवाया। इइ ब िदया एए गहा एवमात्रओ ॥ वही ३६३१२८-१३ । ३ तेइन्दिया उजे जोवा दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता तेसिं भेए सुणेह मे ॥ बही ३६।१३६। ४ कुन्थु पिवीलि उड्डसा उक्क लदेहिया वहा । इन्द गोवगमाईया गहा एवमायो । पही ३६।१३७-१३९ । ५ परिन्दिया उजे जीवा सेसि भेए सुणे हमे । वही ३६६१४५॥ ६ अन्धिया पोत्तिया व माच्छयामसगा तहा । इइ चारिन्दिया एए उणगहा एषमायबो॥ बही ३६१४६-१४९ ।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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