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________________ पम्मपन में प्रतिपादित बनीमा ३९ की दशा भी वैसी ही ह। वे लोग तृष्णा से नाना प्रकार के विषयों में राग उत्पन्न करते हैं और इसी राग के बधन में अपने को बांधकर दिन रात कष्ट उठाते है। तृष्णा तीन प्रकार की बतलायी गयी ह १ कामतृष्णा यह नाना प्रकार के विषयों की कामना करती है। २ भवतष्णा भव = ससार या जन्म अर्थात् इस ससार की सत्ता बनाये रखनेवाली तृष्णा । इस ससार की स्थिति के कारण हमी है । हमारी तृष्णा ही इस ससार को उत्पन्न किए हुए है। ससार के रहने पर ही हमारी सुखवासना चरिताय होती है। अत इस ससार की तृष्णा भी तृष्णा का ही एक प्रकार है जो दु ख का कारण है। ३ विभवतण्या उच्छेद-दष्टि का नाम विभवतष्णा है। विभव का अर्थ है उच्छेद ससार का नाश । उच्छद-दृष्टि से युक्त राग ही विभवतृष्णा है । पूव-पूर्व भव की तृष्णा पश्चिम पश्चिम भव में उत्पन्न होनेवाले द खों का समुदय होती है । अत तृष्णा समदय सत्य कहलाती है । अविद्या कम व तष्णा स सार के कारणरूप है अत तीनों पृषक-पृषक रूप से दुख के कारण कहे गये है। ३ दुखनिरोष तृतीय आयसत्य का नाम द खनिरोष है। निरोष शब्द का अर्थ नाश या त्याग है। जब दु ख और उसका कारण ह तब उसके कारण का निरोध कर दुख का भी निरोष किया जा सकता है। दुख के कारण तृष्णा का निरोष ही 'दुसनिरोष है। पांच काम गुणों में नहीं लगना उसमें मानन्द नहीं लेना उसमें नहीं डवे रहने से तृष्णा का क्षय निरोष होता है। इससे ही सम्पूण दुख का निरोष होता है । यही दुखनिरोष है। पम्मपद में दु खनिरोध को बतलाते हुए निरोप शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार से की गयी है कि किस मुध के निरोप से दुख निव हो जाता है। यदि ऐसा न हो तो जैसे सुदृढ़ बड के सर्वधा नहम होनेवाले तने से कटा वृक्ष फिर बढ़ जाता है वैसे ही १ ये रागस्तानुपतन्ति सोतं समं कत मक्कत कोषषाक। सम्मपद ३७ । २ दीघनिकाय २३३ ८ १ २३ मज्झिमनिकाय १४८४९ पृ. ६५ वादि । ३ पाण्डेय गोविन्दचन्द्र ओरिजिन्स बॉन् बुद्धिज्म पृ ४३४ ३५ । ४ देखिए संयुत्त निकाय २७८ पृछ ८९।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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