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________________ निर्वाण बोबषम का परम लक्ष्य है वहाँ समस्त कर्यालयों का भय हो जाता है। वह स्थिति बतीन्द्रिय एवं परम सखकारी है। भगवान बुद्ध ने अभिसम्बोषित काल में ससका साक्षात्कार किया था। पम्मपद में अनेक स्थलों पर निर्वाण का उल्लेख आया है यहां पर निर्माण को सबसे बड़ा सुख कहा गया है। निर्वाण को प्राय नित्य सत्य ध्रुव शान्त सुख अमृतपद परमार्थ इत्यादि कहा गया है।' तृष्णा भय को ही निर्वाण कहा जाता है । निर्वाण इसी बन्म में प्रात होता है। इसीको सोपाषिशेष निर्वाण कहते है । इसको प्रास करने के लिए सापक को लोग ईया मोह मान दृष्टि विचिकित्सा सत्यान बौद्धत्य मही तथा अनुसाप इन दस क्लेशों का नाश करना पडता है । इसकी प्राति के चार सोपान है-स्रोतापत्ति सकृदागामि अनागामि और अहत् । निर्वाण की प्राप्ति सस्कारों के पूर्ण शमन से होती है। वह एक ऐसा आयतन है जहां पृथ्वी जल तेज वायु आकाश अकिन्चन्य लोक परलोक चन्द्र सूय च्युति स्थिति आषार आदि नही है। बकलने भी बौखों के निर्वाण को परिभाषा का उल्लेख किया है। उन्होंने एक स्थान पर रूप वेदना सज्ञा सस्कार और विज्ञान इन पांच स्कन्धो के निरोष को मोक्ष कहा है । चतुथ सत्य माग सय था। अपनी रूठ परिभाषा में यह अष्टांगिक मार्ग' के रूप में वर्णित है। भगवान द्वारा उपदिष्ट मध्यम मार्ग यही आय बांगिक मार्य है। इसम आठ अग हैं यथा-सम्यक दृष्टि सम्यक सकल्प सम्यक वाफ सम्पक कम सम्यक आजीब सम्यक व्यायाम ( बेष्टा या प्रयत्न) सम्यक स्मृति एवं सम्यक समाधि । इसमें सम्यक दृष्टि प्रथम ही नहीं अपितु प्रमुख भी है। इसे प्रज्ञा भी कहते हैं । सम्यक का तात्पय सन्तुलित से है । सन्तुलित दृष्टि ही सम्यक दृष्टि है। सन्तुलित से तात्पर्य है दोनो अन्तो की बोर न जाकर बीच में रहना अर्थात् बाचार की दृष्टि से और दार्शनिक दृष्टि से भी पूर्ण सन्तुलित रहना । इसी बार्य अष्टांगिक माग में १ मज्झिमनिकाय २२३३५ । २ पम्मपद गाथा स २ ३२ ४। ३ बौद्धधर्म के विकास का इतिहास प ९३। ४ सुत्तनिपात पारायणवण । ५ वीपनिकाय तृतीय भाग पृ १८२ । ६ उदान पाटलिगबग । ७ न्यायाचाय महेन्द्रकुमार तत्वाप बाविक (बालक) ११११८ तथा डों राधाकृष्णन इण्डियन फिलासफी बिल्ल १५ ४१८॥ ८ षम्मपद नापास २७३।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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