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________________ २४ बोर तथा अनयम कषाय चार प्रकार के होते है -अनन्तानुबधी अप्रत्यास्थानावरण प्रत्याख्याना बरण एव सज्वलन । जिस कषाय के प्रभाव से जीव को अनन्त काल तक भव भ्रमण करना पडता है उसे अनन्तानुबन्धी कषाय कहा जाता है। जिस कषाय के उदय से देशविरतिरूप प्रत्याख्यान प्राप्त नहीं होता उसे अप्रयाख्यानावरण कषाय कहा जाता है । जिस कषाय के उदय से सर्वविरतिरूप प्रत्याश्यान प्राप्त नहीं होता उसे प्रत्याख्यानावरण कषाय कहा जाता है । जिस कषाय के उत्पन्न होन पर साधक अल्प समय के लिए मात्र अभिमत होता है उसे सज्वलन कषाय कहत है। चार प्रकार के कषायों म हर एक के चार विभाग होने से कुल १६ विभाग होते है। इसके अतिरिक्त उपकषाय या कषायपरक भी माने गये हैं जिनकी संख्या ७ या ९ह-हास्य रति भरति शोक भय जुगुप्सा ( घणा) और वद (स्त्री पुरुष और नपसकलिङग)। वेद को स्त्री विषयक मानसिक विकार पुरुष विषयक मानसिक विकार तथा उभय विषयक मानसिक विकार के भेद से तीन भद कर देन पर नोक्षाय के ९ भद हो जाते हैं। उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार उक्त १६ कषाय और ९ नो-कषाय का सम्बन्ध सीधा व्यक्ति के चरित्र से ह । नतिक जीवन के लिए इन वास ओ एव आवगो से ऊपर उठना आवश्यक है क्योंकि जब तक 'यक्ति इनसे ऊपर नही उठगा तब तक वह नतिक प्रगति नही कर सकता। जन प्रथो म इन चार प्रमुख कषायो को चडाल चौकडी कहा गया है । इसम अन तानुबधी आदि जा विभाग ह उनको सदव ध्यान म रखना चाहिए और हमशा यह प्रयत्न करना चाहिए कि कषायो म तीव्रता न आय क्योकि अन तानुबधी क्रोध मान माया और लोभ के होन पर साधक अनन्त काल १ कमग्रथ १।३५ तथा जन बौद्ध तथा गीता के आचार-दर्शनो का तुलनात्मक अध्ययन भाग १ प ५१ । जनधम दर्शन प ४६५ । २ सोलसविहभएण कम्म तु कसायज । सत्तविह नवविह वा कम्म च नोकसायज ।। उत्तराध्ययन ३३१११ । ३ वही ३३।११ टोका आ माराम ने प १५३४ पर इसके विषय म निम्न गाथा उदधृत की हैकषायसहवतित्वात् कषायप्ररणादपि । हास्या दिनवक स्योला नोकषायकषायत ॥ ४ जन बौद्ध तथा गीता के आचार दशनो का तुलनात्मक अध्ययन भाग १
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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