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________________ १८] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया२५ अभिप्राय करि नियम नाही है । सोई कहिए है - सम्यक्त्वपरिणाम विष वर्तमान कोई जीव यथायोग्य परभव के आयु को बांधि बहुरि सम्यग्मिथ्यादृष्टि होइ पीछे सम्यक्त्व को वा मिथ्यात्व को प्राप्त होइ मरै है। बहुरि कोई जीव मिथ्यात्वपरिणाम विषै वर्तमान, सो यथायोग्य परभव का आयु बांधि, बहुरि सम्यग्मिथ्यादृष्टि होइ पीछे सम्यक्त्व कौ वा मिथ्यात्व को प्राप्त होइ मरै है । बहुरि तैसे ही माराणातिक समुद्घात भी मिधगुणस्थान विष नाही है । आगै असंयत गुणस्थान के स्वरूप को निरूप है। सम्मत्तदेसघादिस्सुदयादो वेदगं हवे सम्म । चलमलिनमगाढं तं पिच्चं कम्मक्खवरणहेदु ॥२५॥ सम्यक्त्वदेशघातेरुदयाद्वेदकं भवेत्सम्यक्त्वम् । चलं मलिनमगाढं तन्नित्यं कर्मक्षपणहेतु ॥२५॥ टोका - अनंतानुवंधी कषायनि का प्रशस्त उपशम नाही है, इस हेतु ते तिन अनतानुबंधी कषायनि का अप्रशस्त उपशम को होते अथवा विसंयोजन होते, बहुरि दर्शनमोह का भेदरूप मिथ्यात्वकर्म अर सम्यग्मिथ्यात्वकर्म, इनि दोऊनि को प्रशस्त उपशमरूप होते वा अप्रशस्त उपशम होते वा क्षय होने के सन्मुख होते बहुरि सम्यक्त्व प्रकृतिरूप देशघातिया स्पर्धकों का उदय होते ही जो तत्त्वार्थश्रद्धान है लक्षण जाका, असा सम्यक्त्व होइ, सो वेदक असा नाम धारक है । जहा विवक्षित प्रकृति उदय पावने योग्य न होइ अर स्थिति, अनुभाग घटने वा वधन वा संक्रमण होने योग्य होइ, तहा अप्रशस्तोपशम जानना । बहुरि जहां उदय प्रावने योग्य न होइ पर स्थिति, अनुभाग घटने-बधने वा संक्रमण होने योग्य भी न होइ, तहां प्रशस्तोपशम जानना । बहुरि तीहिं सम्यक्त्व प्रकृति का उदय होते देशघातिया स्पर्धकनि के तत्त्वार्थ यद्धान नष्ट करने को सामर्थ्य का अभाव है; तातै सो सम्यक्त्व चल, मलिन प्रगाढ हो है । जाते सम्यक्त्व प्रकृति के उदय का तत्त्वार्थश्रद्धान को मल अजावने मात्र ही विपं व्यापार है । तीहि कारण ते तिस सम्यक्त्व प्रकृति के देगपातिरना है । असे सम्यक्त्व प्रकृति के उदय की अनुभवता जीव के उत्पन्न भया
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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