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________________ ८) ५०१०० ० १०००० ५०००० ५.००.०० १००.०० ० नवाग ३२. श्री कपूरचन्द राजमल जैन एवं परिवार ३३ थी छोटेलाल सतीशचन्दजी जैन इटावा सायला ३४. श्रीमती रगवाई घ.प.श्री उम्मेदमलजी भण्डारी फिरोजाबाद ३५ श्रीमती केसरदेवी धप श्री जयनारायणजी जैन ३६. श्री सुहास वसत मोहिरे । बेलगाव ३७ श्री वीरेन्द्रकुमार वालचन्द जैन पारोला ३८ श्रीमती केसरदेवी वण्डी उदयपुर ३६. श्री माणकचन्द प्रभुलालजी कुगवट ४० श्रीमती रत्नप्रभा सुपुत्री स्व. श्री ताराचन्दजी गगवाल जयपुर ४१ श्री माणकचन्द प्रभुलालजी भगनोत फुगवट ४२. श्री नेमीचन्दजी जैन मगरोनी वाले शिवपुरी ४३. स्व श्रीमती कुसुमलता एव सुनद वसल स्मृति निधि हस्ते डॉ. राजेन्द्र बसल अमलाई ४४. श्री जयन्ति भाई धनजी भाई दोशी दादर बम्बई ४५. श्रीमती धुडीवाई खेमराज गिडिया खैरागढ़ ४६. चौ० फूलचन्दजी जैन वम्बई ४७. फुटकर ५००.०० ५०००० १००.०० ५.००.०० १११.०० १०१.०० १०१.०० ५७७२.०० योग ३२८२०.०० हे भव्य हो । शास्त्राभ्यास के अनेक अग है। शब्द या अर्थ का वाचन या सीखना, सिखाना, उपदेश देना, विचारना, सुनना, प्रश्न करना, समाधान जानना, वारम्वार चर्चा करना इत्यादि अनेक अग है-वहाँ जैसे वने तैसे अभ्यास करना । यदि सर्व शास्त्र का अभ्यास न बने तो इस शास्त्र मे सुगम या दुर्गम अनेक अर्थों का निरूपण है, वहाँ जिसका वने उसका अभ्यास करना । परन्तु अभ्यास मे ग्रालसी न होना । - प० भागचन्द जी
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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