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________________ परिफाष्टका सम्बन्धी प्रकरण ६६ ] घटाए एक स्थानीय पांच में विदी घटाए पांच ही रहे, दशस्थानीय पाच में एक घटाए च्यारि रहे जैसे पैतालीस भए । बहुरि गुणकार विपं अंक को विदीकरि गुणे विदी होय । जैसे वीस की पाच करि गुरिणए, तहां गुण्य के दुवा को पांच करि गुगणे दश भए । वहुरि विदी को पांच करि गुणे, विंदी ही भई अस सी भए । बहुरि अंक का विदी का भाग दीए खहर कहिए । जाते जैसे-जैसे भागहार घटता होइ, तैसे-तैसे लब्धराशि वधती होइ । जैसे दश की एक का छठा भाग का भाग दिए साठि होड, एक का वीसवां भाग का भाग दीए दोय सै होय, सो विदी शून्यरूप, ताका भाग दीए फल का प्रमाण अवक्तव्य है । याका हार विदी है, इतना ही कह्या जाए । वहुरी विदी का वर्गधन, वर्गमल, घनमूल विपं गणकारादिवत् विदी ही हो है। असे लौकिक गणित अपेक्षा परिकर्माप्टक का विधान कह्या । वहुरि अलौकिक गणित अपेक्षा विधान है, सो सातिशय ज्ञानगम्य है । जाते तहां अंकादिक का अनुक्रम व्यक्तरूप १ नाही है। तहा कही तो संकलनादि होते जो प्रमाण भया ताका नाम कहिए है । जैसे उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात विप एक जोडै जघन्य परीतानंत होड, (जघन्य परीतानत मे एक घटाएं उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात होड) २ अर जघन्य परीतासंख्यात विप एक घटाएं उत्कृप्ट संख्यात होइ । पल्य को दशकोडाकोडि करि गुणे सागर होइ जगत् श्रेणी कू सात का भाग दीए राजू होइ । जघन्य युक्तासंल्यात का वर्ग कीए जघन्य असंख्यातासंख्यात होइ । सूच्यंगल का घन कीये धनांगुल होइ । प्रतरांगुल का वर्गमूल ग्रहे मूच्यंगुल होइ । लोक का घनमूल ग्रहे जगत् श्रेणी होड, इत्यादि जानना। वहुरि कही संकलनादि होते जो प्रमाण भया, ताका नाम न कहिए है, संकलनादिरूप ही कथन कहिए है । जाते सर्व संख्यात, असंख्यात, अनंतनि के भेदनि का नाम वक्तव्यरूप नाही है । जैसे जीवराशि करि अधिक पुद्गलराशि कहिए वा सिद्ध राशि करि दीन जीवराशि कहिए, वा असंख्यात गुणा लोक कहिए वा संख्यात प्रतरांगुन्न करि भाजित जगत्प्रतर कहिए, वा पल्य का वर्ग कहिए, वा पल्य का घन कहिए, वा केवलज्ञान का वर्गमूल कहिए, वा आकाश प्रदेशराशि का घनमूल कहिए, इत्यादि १.६ प्रनि 'बनभ्यरूप' ऐना पाठ है। २.यह दाय मि छपी प्रति में है,तलिम्बित सहनियों में नहीं है।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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