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________________ i EU १४८ सभ्यग्ज्ञानचन्द्रिका पीठिका ] बहुरि भिन्न भागहार विषै भाजक के हारनि को अंश कीजिए अर अशनि को हार कीजिए । असे पलटि भाज्य-भाजक का गुण्य-गुणकारवत् विधान करना । जैसे सैतीस के आधा कौं तेरह की चौथाई का भाग देना होइ तहां असे २ लिखिए बहुरि भाजक के हार अर अंश पलट असे २ |१३| लिखिना । बहुरि गुणनविधि कीए एक सौ अडतालीस हार अर छन्वीस अंश २६ भए । तहां अंश का हार को भाग दीए पांच पाए । अर अवशेष अठारह छव्वीसवां भाग, ताका दोय करि अपवर्तन कीए नव तेरहवां भागमात्र भया । जैसे ही अन्यत्र जानना। ___ बहुरि भिन्न वर्ग अर घन का विधान गुणकारवत् ही जानना । जातै समान राशि दोय कौ परस्पर गुणे वर्ग हो है । तीन को परस्पर गुणे घन हो है । जैसे तेरह का चौथा भाग को दोय जायगा मांडि परस्पर गुणे ताका वर्ग एक सौ गुणहतर का सोलहवां भागमात्र १३६ हो है । अर तीन जायगा मांडि | परस्पर गुणें इकईस सै सत्याणवै का चौसठवां भाग मात्र ६४ घन हो है। बहुरि भिन्न वर्गमूल, घनमूल विष हारनि का अर अंशनि का पूर्वोक्त विधान करि जुदा-जुदा मूल ग्रहण करिए । जैसे वर्गित राशि एक सौ गुणहत्तरि का सोलहवा भाग १६ । तहां पूर्वोक्त विधान तै एक सौ गुणहत्तरि का वर्गमूल तेरह, अर सोलह का च्यारि असे तेरह का चौथा भागमात्र ४ वर्गमूल आया । बहुरि घनराशि इकईस से सत्याणवै का चौसठवां भाग ४ । तहां पूर्वोक्त विधान करि इकईस से सत्याणवे का घनमूल तेरह, चौसठि का च्यारि ऐसे तेरह का चौथा भागमात्र १ घनमूल पाया। अमें ही अन्यत्र जानना। वहुरि अब शून्यपरिकर्माप्ट लिखिए है । शून्य नाम विदी का है, ताके सकलनादिक कहिए है। तहां विदी विप अंक जोडे अंक ही होय । जैसे पचान विष पाच जोडिए । तहा एकस्थानीय विदी विष पांच जोडे पाच भए । दशस्थानीय पांच ही, असे पचावन भए । बहुरि अंक विप विदी घटाए अंक ही रह । जैसे पचायन में दश २१६७ २१६७ १३
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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