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________________ [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया ४२८-४२६-४३० असुराणामसंख्येयाः, कोटयः शेषज्योतिष्कांतानाम् । संख्यातीतसहस्रा, उत्कृष्टावधीनां विषयस्तु ॥४२७।। टोका - असुरकुमार जाति के भवनवासी देवनि कै उत्कृष्ट अवविज्ञान का विषयभूत क्षेत्र असंख्यात कोडि योजन प्रमाण है । बहुरि अवशेप रहे नव प्रकार भवनवासी अर व्यतर देव अर ज्योतिषी देव, तिनिकै उत्कृष्ट विपय क्षेत्र असंख्यात सहस्र योजन प्रमाण है। असुराणमसंखेज्जा, वस्सा पुरण सेसजोइसंतारणं । तस्संखेज्जदिमागं, कालेण य होदि णियमेण ॥४२८॥ असुराणामसंख्येयानि, वर्षाणि पुनः शेषज्योतिष्कांतानाम् । तत्संख्यातभागं, कालेन च भवति नियमेन ॥४२८॥ टोका - असुरकुमार जाति के भवनवासीनि के अवधि का उत्कृष्ट विषय काल की अपेक्षा असंख्यात वर्ष प्रमाण है । बहुरि इस काल के संख्यातवें भागमात्र अवशेष नव प्रकार भवनवासी वा व्यतर ज्योतिषी, तिनके अवधि का विषयभूत काल का उत्कृष्ट प्रमाण नियमकरि है । भवणतियाणमधोधो, थोवं तिरियेण होदि बहुगं तु । उड्ढेण भवरणवासी, सुरगिरिसिहरो ति पस्संति ॥४२॥ भवनत्रिकाणामधोऽधः, स्तोकं तिरश्चां भवति बहुकं तु । ऊर्चेन भवनवासिनः, सुरगिरिशिखरांतं पश्यति ॥४२९॥ टोका - भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिषी ए जो भवनत्रिक देव, तिनिकै अधोऽधो कहिए नीचली दिशा प्रति अवधि का विषयभूत क्षेत्र स्तोक है । बहुरि तिर्यंच कहिए मापका स्थान की बरोबरि दिशानि प्रति क्षेत्र बहुत है। बहुरि भवनवासी अपने स्थानक तें ऊपरि मेरुगिरि का शिखरि पर्यंत अवधिदर्शन करि देखे है । सक्कीसाणा पढम, बिदियं तु सणक्कुमार-माहिंदा । तदियं तु बह-लांतव, सुक्क-सहस्सारया तुरियं ॥४३०॥
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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