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________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ] इच्छितराशिच्छेदं, देयच्छेदैर्भाजिते तत्र । लब्धमितदेय राशीनामभ्यासे इच्छितो राशिः ॥ ४२० ॥ टीका - यह करणसूत्र है, सो सर्वत्र संभव है । याका अर्थ दिखाइए है - इच्छित राशि कहिए विवक्षित राशि का प्रमाण, ताके जेते अर्धच्छेद होइ, तिनिक देय राशि के जेते अर्धच्छेद होंइ, तिनिका भाग दीएं, जो प्रमाण आवै, तिसका विरलन कीजिए, एक एक जुद जुदा स्थापिए । बहुरि तिस एक एक के स्थान के जिस देय राशि के अर्धच्छेदनि का भाग दीया था, तिसही देयराशि को माड़ि, परस्पर गुणन कीजिए, तो विवक्षित राशि का प्रमाण होइ । [ ५५१ सो प्रथम याका उदाहरण लौकिक गणित करि दिखाइए है - इच्छित राशि दो से छप्पन ( २५६), याके अर्धच्छेद आठ, बहुरि देयराशि चौसाठि (६४) का चौथा भाग सोलह, याके अर्धच्छेद च्यारि, कैसे ? भाज्यराशि चौसठ, ताके अर्धच्छेद छह, तिनिमे स्यो भागहार च्यारि, ताके अर्धच्छेद दोय घटाइए; तब अवशेष च्यारि अर्धच्छेद रहे । अब इनि च्यारि अर्धच्छेदनि का भाग उन आठ अर्धच्छेदनि कौ दीजिए ; तब दोय पाया (२), सो दोय का विरलन करि ( ११ ), एक एक के स्थान की एक चौसठ का चौथा भाग, सोला सोला दीया, याही याकौ देय राशि कहिए, सो इनिका परस्पर गुणन कीया, तब विवक्षित राशि का परिमाण दोय से छप्पन हुवा | जैसे ही अलौकिक गणित विषै विवक्षित राशि पल्य प्रमाण अथवा सूच्यंगुल प्रमाण वा जगच्छ्रेणी प्रमाण वा लोक प्रमाण जो होइ, ताके जेते अर्धच्छेद हों, तिनिको देयराशि जो आवली का असंख्यातवां भाग, ताके जेते अर्धच्छेद होइ, तिनका भाग दीए, जो प्रमाण आवै तिनिका विरलन करि - एक एक करि बखेरि, बहुरि एक एक के स्थान की एक एक आवली का असंख्यातवा भाग मांडि, परस्पर गुणन कीजिए, तो विवक्षित राशि पल्य वा सूच्यंगुल वा जगच्छ्रेणी वा लोकप्रमाण हो है । दिण्णच्छेदेणवहिद- लोगच्छेदेण पदधरणे भजिदे । लद्धमिदलोगगुणरणं, परमावहि- चरिम - गुणगारो ॥४२१॥ देयच्छेदेनावहित लोकच्छेदेन पदधने भजिते । लब्धमितलोकगुरणनं, परमावधिचरमगुणकारः ॥४२१॥
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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