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________________ ४८ ] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ३२६ सकलन का कोठा विर्ष चूणि है । चूणि का प्रमाण जघन्य का पांच वार अनंत का भाग दीए, जो प्रमाण होइ, सो तितना है । तिस प्रमाण के दोय, तीन, च्यारि, पांच, छह तौ क्रम ते गुणकार होइ; अर पांच, च्यारि, तीन, दोय, एक भागहार होइ । तहा गुणकारनि करि चूर्णि को गुणे भागहारनि का भाग दीए, यथायोग्य अपवर्तन कीए, छह गुणां, चूर्णिमात्र तिस कोठा विषै प्रमाण आवै है।। __भावार्थ - असा जो दोय, तीन, च्यारि, पांच का गुणकार अर भागहार का तौ अपवर्तन भया । छह को एक का भागहार रह्या, तातै छह गुणां चूर्णिमात्र तहा प्रमाण है । बहुरि जैसे ही अनंत भागवृद्धि युक्त अत भेद विर्षे यह स्थान सूच्यगुल का असख्यातवां भाग का जो प्रमाण तेथवां है । तातै तिर्यग्गच्छ सूच्यगुल का असंख्यातवा भागमात्र है । तामै एक घटाए, अवशेष एक वार आदि संकलन के वार है । तिनिविष विवक्षित च्यारि बार सकलन का कोठा विष प्रमाण ल्याइए है । विवक्षित संकलन बार च्यारि, ऊर्ध्वगच्छ सूच्यगुल का असख्यातवां भाग मात्र मै स्यो घटाए, अवशेष मात्र आदि है । यातै एक एक बधता क्रम करि ऊर्ध्वगच्छ सूच्यंगुल का असख्यातवा भाग पर्यत तौ गुणकार होइ । अर उलटे क्रम करि एक आदि एक एक बधता पाच पर्यंत भागहार होइ, सो च्यारि बार संकलन का कोठा विर्षे चूरिण है । तातै चूणि को तिनि गुणकारनि करि गुणे भागहारनि का भाग दीए, लब्धमात्र तिस कोठा विष वृद्धि का प्रमाण है । इहां गुणकार भागहार समान नाही; तातै अपवर्तन होइ सकता नाही । इहा लब्धराशि का प्रमाण अवधिज्ञान गोचर जानना । बहुरि तिसही अनत भागवृद्धि युक्त अंत का भेद विषै विवक्षित द्विचरम चूणिचूर्णि का दोय घाटि, सूच्यंगुल का असख्यातवा भाग मात्र बार सकलन घन का प्रमाण ल्याइए है । इहा भी तिर्यग्गच्छ सूच्यगुल का असख्यातवा भाग मात्र है । तामै एक घटाएं, एक बार आदि सकलन के बार हो है। तहां विवक्षित सकलन बार दोय घाटि, सूच्यंगुल का असंख्यातवां भागमात्र, सो ऊर्ध्वगच्छ सूच्यगुल का असख्यातवा भागमात्र मै घटाए, अवशेष दोय रहे, सो आदि जानना । इसतै लगाइ एक एक वधता ऊर्ध्वगच्छ पर्यंत गुणकार अनुक्रम करि हो है । पर एक आदि एक एक वधता अपने इष्ट बार का प्रमाण ते एक अधिक पर्यत उलटे क्रम करि भागहार हो है । इहां दोय आदि एक घाटि सूच्यगुल का असख्यातवा भाग पर्यत अक गुणकार वा भागहार विष समान है । तातै तिनिका अपवर्तन कीया । अवशेष सूच्यगुल का असख्यातवां भाग का गुणकार रह्या । एक का भागहार रह्या । इहां इस कोठा
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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