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________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषा टीका ] तिरियपदे रुऊणे, तदिट्ठहेट्ठिल्ल संकलरणवारा । कोट्टधरणसारयणे, पभवं इट्ठू उड्ढपदसंखा ॥१॥ [ ४६७ अनंत भागवृद्धि युक्त स्थाननि विषै जेथवां स्थान विवक्षित होइ, तीहि प्रमाण तिर्यग् गच्छ कहिये । तामै एक घटाए, ताके नीचे सकलन बार का प्रमाण हो है । इहां उदाहरण - जैसें छठा स्थान विषं गच्छ का प्रमाण छह में एक घटाएं, ताके नीचे पांच संकलन बार हो है । प्रक्षेपक सम्बन्धी कोठा के नीचे एक बार, दोय बार, तीन, च्यारि बार, पांच बार, संकलन, प्रक्षेपकप्रक्षेपक आदि के एक एक कोठानि विषै संभव है; जैसे ही अन्यत्र जानना । बहुरि विवक्षित कोठानि का सकलन घन ल्यावने के प्रथि जेथवां भेद होइ, तीहि प्रमाण जो ऊर्ध्व गच्छ, तीहि विषै जेती वार विवक्षित संकलन होइ, तितना घटायें, अवशेष मात्र प्रभव कहिये आदि जानना । तत्तोरुवहियकमे, गुणगारा होंति उड्ढगच्छो त्ति । इगिरुवमादिरूवोत्तरहारा होंत्ति पभवो त्ति ॥२॥ अर्थ - तिस आदि तै लगाइ, एक-एक बधता ऊर्ध्वगच्छ का प्रमाण पर्यत, अनुक्रम करि विवक्षित के गुरणकार होंहि । बहुरि तिनिके नीचे एक ते लगाइ, एक एक बधता, उलटा क्रम करि प्रभव जो आदि, ताका भी नीचा पर्यंत तिनिके भागहार होंहि । गुणकारनि को परस्पर गुरौं, जो प्रमाण होइ, ताकौ भागहारनि को परस्पर गुणै, जो प्रमाण होइ, ताका भाग दीए, जेता प्रमाण आवै, तितने तहा प्रक्षेपक - प्रक्षेपक आदि संबंधी कोठा विषे वृद्धि का प्रमाण आव है । इहां उदाहरण कहिए है - अनंत भागवृद्धि युक्त स्थान विषै विवक्षित छठा स्थान विषै एक घाटि तिर्यग्गच्छ प्रमाण एक बार आदि पाच संकलन स्थान है । तिनि विषे च्यारि बार संकलन ? संबंधी कोठानि विषै प्रमाण ल्याइए है । विवक्षित संकलन बार च्यारि तिनिका इहां छठा भेद विवक्षित है । तातै ऊर्ध्वगच्छ छह, ता घटाएं, अवशेष दोय रहे; सो आदि जानना । इस आदि दोय तै लगाइ, एक एक अधिक ऊर्ध्वगच्छ छह पर्यंत तो क्रम करि गुणकार होइ । र तिनके नीचे उलटे क्रम करि श्रादि पर्यंत एक आदि एक एक अधिक भागहार होइ; सो इहा च्यारि वार १ ध प्रति मे सकलन सकलन शब्द है ।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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