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________________ ४४) [ गोम्मटसार कर्मकाण्ड सम्बन्धी प्रकरण लगावने की अपेक्षा गुण्य, गुणकार, क्षेप आदि विधान ते जेते-जेते प्रत्येक स्वसंयोगी परसयोगी, द्विसंयोगी आदि भग संभवै तिनका, अर तहां गुण्य, गुणकार, क्षेप का प्रमाण कहि सर्व भंगनि के प्रमाण का वर्णन है । वहुरि पिंडपद, प्रत्येकपद भेदकरि सर्वपद भग दोय प्रकार है । तिनके स्वरूप का, अर गुणस्थान विष ए जेते जैसे सभवें ताका, अर तहां परस्पर लगावने ते प्रत्येक द्विसयोगी आदि भग कीए जे भंग होहि तिनका, तहां मिथ्यादृष्टि का पन्द्रहवां प्रत्येक पद विप भंग ल्यावने का, प्रसंग पाइ गणितशास्त्र के अनुसार एकवार, दोयवार आदि सकलन धन के विधान का, अर गुणस्थाननि विष प्रत्येकपद, पिंडपदनि की रचना के विधान का, अर प्रत्येकपदनि के प्रमाण का, अर तहां जेते सर्वपद भंग भए तिनका वर्णन है। वहरि यहा तीनस तिरेसठि कूवाद के भेदनि का अर तिन विष जैसे प्ररूपण है ताका, अर एकान्तरूप मिथ्यावचन, स्याद्वादरूप सम्यग्वचन का वर्णन है। बहुरि आठवां त्रिकरण चूलिका नामा अधिकार है । तहां मंगलाचरण करि करणनि का प्रयोजन कहि अधःकरण का वर्णन विषै ताके काल का अर तहां सभवते सर्व परिणाम, प्रथम समय संबंधी परिणाम, अर समय-समय प्रति वृद्धिरूप परिणाम, वा द्वितीयादि समय संवन्धी परिणाम, वा समय-समय सम्वन्धी परिणामनि विप खंड रचनाकरि अनुकृष्टि विधान, तहां खंडनि विष प्रथम खंड विष वा खंड-खंड प्रति वृद्धिरूप वा द्वितीयादि खडनि विप परिणाम तिनका अंकसंदृष्टि वा अर्थ अपेक्षा वर्णन है। तहां श्रेणीव्यवहार नामा गणित के सूत्रनि के अनुसार ऊर्ध्वरूप गच्छ, चय, उत्तर वन, आदि बन, सर्व धनादिक का, अर अनुकृष्टि विष तिर्यग्रूप गच्छादिक के प्रमाण ल्यावने का विधान वर्णन है । अर तिन खंडनि विपै विशुद्धता का अल्पबहत्व का वर्णन है । वहुरि अपूर्वकरण का वर्णन विषे अनुकृष्टि विधान नाही, अव्वंन्प गच्छादिक का प्रमाण ल्यावने का विधान पूर्वक ताके काल का वा सर्व परिगाम, प्रथम समयसंवन्धी परिणाम, समय-समय प्रति वृद्धिरूप परिणाम, द्वितीयादि नमय मवन्धी परिणाम, तिनका अंकसंदृष्टि वा अर्थ अपेक्षा वर्णन है । वहुरि अनिवत्ति करण विपं भेद नाही, तातै तहां कालादिक का वर्णन है। बहरि नवमा कर्मस्थिति अधिकार है । तहां नमस्कारपूर्वक प्रतिनाकरि पावाग के लक्षण का वा स्थिति अनुसार ताके काल का, वा उदी मो.
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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